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________________ हरिवंशपुराण का परवर्ती साहित्य पर प्रभाव कला का सम्बन्ध व्यक्तिगत प्रतिभा और निजी अभिरुचि से है। फिर भी पूर्ववर्ती तथा समसामयिक कलाकारों के प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष प्रभाव कवि की कला के निर्माण में योग अवश्य देते हैं। काव्य के भाव और उसकी अभिव्यक्ति एक ही वस्तु के दो पक्ष हैं तथा ये इतने अभिन्न है कि इनको अलग नहीं किया जा सकता। जब एक कवि का प्रभाव दूसरे पर पड़ता है, तब उसमें भाव तथा अभिव्यक्ति दोनों की छाया विद्यमान रहती है। __ जैन साहित्य में विलक्षण प्रतिभा के धनी जिनसेनाचार्य की कृति हरिवंशपुराण का परवर्ती काव्य पर आश्चर्यजनक प्रभाव पड़ा है। इसका मूल कारण यह है कि जैन-जगत में यह कृति, ऐसी प्रथम कृति रही है जिसमें श्री कृष्ण का सम्पूर्ण जीवन-चरित्र व्यवस्थित एवं क्रमबद्ध रूप से चित्रित हुआ है। इतना ही नहीं, इसमें कृष्ण कथा के अवान्तर प्रसंगों का भी विस्तृत निरूपण है। अतः कृष्ण-चरित्र की दृष्टि से परवर्ती जैन साहित्यकारों के लिए यह उपजीव्य कृति रही है। इन साहित्यकारों ने न केवल भाव पक्ष वरन् कला-पक्ष का भी अनुसरण किया है। यहाँ हम उन कृतियों का उल्लेख करेंगे, जिन पर हरिवंशपुराण का प्रभाव स्पष्ट परिलक्षित होता है। संस्कृत-कृतियाँ :(1) महापुराण :-जैन-साहित्य में यह संस्कृत भाषा का प्रसिद्ध ग्रन्थ है। इसके रचयिता "आचार्य जिनसेन" द्वितीय है। यह ग्रन्थ दो भागों में विभाजित है, महापुराण तथा उत्तर पुराण। इस ग्रन्थ के द्वितीय भाग के पर्व 71 से 73 में कृष्ण चरित्र का संक्षिप्त वर्णन है। कृष्ण-चरित्र के प्रमुख प्रसंगों को कवि ने हरिवंशपुराण के आधार पर निरूपित किया है। कृष्ण चरित्र वर्णन में आचार्य जिनसेन का स्पष्ट प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। (2) प्रद्युम्न-चरित्र :-यह महासेनाचार्य की संस्कृत भाषा में रचित "खण्ड-काव्य" कृति है। इसमें विवेचित कृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न का चरित्र वर्णन हरिवंशपुराण की भाव-भूमि पर आधारित है। कवि ने प्रद्युम्न का जन्म, उसका अपहरण, शिक्षा-दीक्षा, उसका विवाह, राजसुख तथा वैराग्य इत्यादि सभी प्रसंगों को हरिवंशपुराण में निरूपित प्रद्युम्न चरित्र के आधार पर वर्णित किया है। श्री नाथूराम प्रेमी के अनुसार इस ग्रन्थ का रचनाकाल वि०सं० 1031 से 1066 के बीच माना जाता है। भाव भूमि ही नहीं वरन् भाषा के क्षेत्र में भी जिनसेनाचार्य का प्रभाव उल्लेखनीय है।
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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