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________________ तथ्य छिपा हो, अतः इसे कोई चुनौती नहीं दे सकता। पुराणकार ने जो नव कथ्य प्रदान किया है, उसका जैन साहित्य में पर्याप्त महत्त्व है। यह वर्णन कृष्ण चरित्र के अन्वेषकों को एक नवीन दृष्टिकोण प्रदान करता है जिससे आज भी कृष्ण चरित्र के अनेक मर्मज्ञ अनभिज्ञ रहे हैं। इन वर्णनों में कवि की बौद्धिकता तथा तर्क-शक्ति दृष्टिगोचर होती है। इन वर्णनों के साथ भारतीय संस्कृति का जो भव्य निरूपण हुआ है, वह मानव के चरमोत्थान का परिचायक है। अतः कवि की यह नवीन दृष्टि न केवल रोचक है वरन् उसकी प्रामाणिकता तथा औचित्य गवेषणीय भी है। | टिप्पणियाँ :1. जैन साहित्य में श्रीकृष्ण - डॉ० महावीर कोटिया - पृ० 43 2. उत्तराध्ययन - 22/2/6 / / अन्तकृद्दशा - 1/1 4. जैन साहित्य में श्रीकृष्ण - डॉ० महावीर कोटिया - पृ० 44 5. हरिवंशपुराण - सर्ग 18/6 - पृ० 292 6. हरिवंशपुराण - सर्ग 38/9 - पृ० 479 7. हरिवंशपुराण - सर्ग 38/40 - पृ० 483 हरिवंशपुराण - सर्ग 51/11-12 - पृ० 593 हरिवंशपुराण - सर्ग 51/13-15 - पृ० 593 10. हरिवंशपुराण - सर्ग 51/26 - पृ० 594 11. हरिवंशपुराण - सर्ग 55/5-8 - पृ० 617 12. हरिवंशपुराण - सर्ग 55/14 - पृ० 617 13. हरिवंशपुराण - सर्ग 55/43-48 - पृ० 627 हरिवंशपुराण - सर्ग 55/50-51 - पृ० 622 15. हरिवंशपुराण - सर्ग 55/58-70 - पृ० 625 16. हरिवंशपुराण - सर्ग 55/71-72 - पृ० 625 हरिवंशपुराण - सर्ग 55/82-85 - पृ० 626 / 18. * हरिवंशपुराण - सर्ग 55/89-92 - पृ० 627 19. हरिवंशपुराण - सर्ग 55/105-108 - पृ० 627 20. हरिवंशपुराण - सर्म 56/118 - पृ० 645 21. हरिवंशपुराण - सर्ग 60/135-36 - पृ० 716 22. . हरिवंशपुराण - सर्ग.६१/१५-१६ - पृ० 755 - D - - - -
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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