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________________ श्री कृष्ण-वध के उपरान्त बलदेव ने भी पंचमुष्टियों से अपने सिर के बाल उखाड़ कर मुनि दीक्षा धारण की। पल्लवस्थजिननाथशिष्यतां संसृतोऽस्म्यहमिहस्थितोऽपि सन्। .. इत्युदीर्य जगृहे मुनिस्थितिं पञ्चमुष्टिभिरवास्य मूर्धजान्॥७३ . देवकी के छः पुत्र तथा श्री कृष्ण के अग्रज, कृष्ण के अनुज गजकुमार तथा उनके पुत्र प्रद्युम्न आदि राजकुमारों ने पूर्व में ही जैन धर्म में दीक्षा ग्रहण कर ली थी। इस प्रकार से श्री कृष्ण स्वयं पूर्णतया जैन धर्म से प्रभावित थे एवं उनके परिवार में देवकी, वसुदेव, श्री कृष्ण के सहोदर, पुत्र शम्ब, प्रद्युम्न तथा रुक्मिणी, सत्यभामा आदि पटरानियाँ, चचेरे भाई अरिष्टनेमि, उनकी पत्नी राजीमती, श्री कृष्ण के अग्रज बलदेव तथा उनके पुत्र इत्यादि सभी ने जैन धर्म में दीक्षा ग्रहण की थी। आचार्य जिनसेन ने इन प्रसंगों को बड़ी ही मार्मिकता के साथ निरूपित किया है। निष्कर्ष : जिनसेनाचार्य ने अपनी कृति में अनेक नवीन उद्भावनाओं को जन्म दिया है, जो कवि की मौलिकता पर आधारित है / इन विचारों से अद्यतन जैनेत्तर समाज सामान्यतः परिचित नहीं है। पुराणकार ने कृष्ण-चरित्र वर्णन में जो नया परन्तु कवि ने अपनी कल्पना शक्ति के आधार पर उसे ऐसा नवीन रूप प्रदान किया है जो कवि की स्वतंत्र मौलिकता का परिचायक है। उन्होंने आगमों से मात्र एक सूत्र के रूप में या संकेत के रूप में जो कथ्य प्राप्त किया, उसे अपनी प्रतिभा के सहारे प्रगाढ़ बौद्धिकता से विवेचित किया है। पुराणकार ने ऐसे नव्य प्रसंगों को उल्लेखित कर अपनी परम्परा को जीवंत बनाने का प्रयास किया है जिसमें उन्हें पूर्ण सफलता मिली है। हो सकता है जैन परम्परा में वर्णित "कृष्ण" अलग ही हो तथा हरिवंशपुराण में उस कृष्ण चरित्र की ब्राह्मण परम्परा के कृष्ण के साथ समन्वित रूप से निरूपित किया हो। यह एक स्वतंत्र शोध का विषय है। ___ हरिवंशपुराण में वर्णित श्री कृष्ण का अरिष्टनेमि का चचेरा भाई होना, कृष्ण के सातों भाईयों को जैन-धर्म में दीक्षित होना, श्री कृष्ण की बहिन का दुर्गा के रूप में प्रतिष्ठित होना, श्री कृष्ण द्वारा जरासंध का वध करना, महाभारत का युद्ध न होकर कृष्ण एवं जरासंध का ही निर्णायक युद्ध होना, कृष्ण का नवम वासुदेव तथा जरासंध का प्रतिवासुदेव होना इत्यादि बातें इस पुराण की प्रमुख एवं महत्त्वपूर्ण नवीनताएँ हैं, जो जैनेतर साहित्य के कृष्ण चरित्र वर्णन में कहीं नहीं मिलती। ये नवीनताएँ आज भी सहृदय पाठकों को आश्चर्य में डालती हैं लेकिन कवि अपनी कल्पना की उड़ान भर सकता है या हो सकता है कि उसके पीछे कोई प्रामाणिक - -
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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