________________ उस बालक को वैताढ्य पर्वत पर ले गया। उसने उसका कल्पवृक्षों से उत्पन्न आहार द्वारा भरण-पोषण किया। आठ वर्ष की अवस्था में उसे जिनागम और आकाशगामिनी विद्या प्रदान की। यही बालक आगे चलकर नारद के नाम से प्रसिद्ध हुआ। हरिवंशपुराण के विवरणानुसार नारद अनेक विद्याओं के ज्ञाता तथा नाना शास्त्रों में निपुण थे। वे साधु वेश में रहते थे तथा साधुओं के वैयावृत्य से संयमासंयम देशव्रत प्राप्त किया था। वे काम को जीतने वाले होकर भी काम के समान विभ्रम को धारण करने वाले थे। वे कामी मनुष्यों को प्रिय, हास्यस्वभाव, अलोलुप, चरमशरीरी, निष्कषायी तथा युद्ध प्रिय थे। महान् अतिशयों को देखने का कौतुहल होने से वे लोक में विभ्रमण करते ' थे।७० श्री कृष्ण परिवार की जैन धर्म में दीक्षा :____ हरिवंशपुराणकार जिनसेनाचार्य का जैन मुनि होने के कारण, उनके प्रत्येक वर्णन में जैन धर्म की महत्ता का प्रतिपादन किया गया है। इसी उद्देश्य से उन्होंने श्री कृष्णपरिवार के सभी सदस्यों के जैन-धर्म में दीक्षित होने का उल्लेख किया है। सर्वप्रथम अरिष्टनेमि जो कि श्री कृष्ण के चचेरे भाई थे, उन्होंने जैन धर्म में दीक्षा लेकर तप किया एवं कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति की। नेमिनाथ के धर्मोपदेश से ही समस्त श्री कृष्ण परिवार प्रभावित था, अतः समयानुसार सभी लोगों ने उनसे दीक्षा ग्रहण की। .: श्री कृष्ण भी नेमिनाथ से अत्यधिक प्रभावित थे। वे कई बार उनसे धर्मोपदेश सुनने के लिए द्वारिका से गिरनार गये। इसके अलावा जब भी नेमिनाथ विहार करते द्वारिका आये, उस समय भी श्री कृष्ण ने उनका भव्य स्वागत किया तथा उनकी धर्म सभा में अपनी उपस्थिति दी। श्री कृष्ण ने प्रवृत्ति का मार्ग पकड़ रखा था, अतः उनके द्वारा दीक्षा लेकर मुनि होना सम्भव नहीं था। श्री कृष्ण के माता-पिता वसुदेव व देवकी भी जैन धर्म से पूर्णतया प्रभावित थे। उनके यहाँ अतिमुक्तक मुनिराज आया करते थे तथा उन्हें धर्मोपदेश सुनाया करते थे। द्वारिका-विनाश के समय शम्ब एवं अनेक चरमशरीरी यादव जैन धर्म में दीक्षा ग्रहण कर पर्वतों की गुफाओं में तप करने लगे थे। शम्बाद्यास्तु तदानेके यादवाश्चरमाङ्गकाः। पुर्या निष्क्रम्य निष्क्रान्तास्तस्थुर्गिरिगुहादिषु // 72 _इतना ही नहीं, वसुदेव इत्यादि अनेक यादवों ने भी जैन धर्म से प्रभावित हो सन्न्यास धारण किया। बलदेव के पुत्रों ने भी जिनेन्द्र भगवान् से दीक्षा ग्रहण की।