________________ श्री कृष्ण की बहन एवं दुर्गा : श्री कृष्ण के जन्म के समय जब वसुदेव बाल कृष्ण के बदले यशोदा की पुत्री को लाये थे, तब मथुरानरेश कंस ने उस बाला की नाक चपटी कर दी थी। तदनन्तर इसी कन्या (श्री कृष्ण की छोटी बहन) ने जगत में उत्तम चन्द्रमा के समान प्रथम यौवन के बहुत भारी भार को धारण किया। __आचार्य जिनसेन ने इस कन्या के रूप-लावण्य का सुन्दर चित्र प्रस्तुत किया है। उनके अनुसार वह कन्या सूक्ष्म, कोमल और अत्यन्त काली रोमराशि से, मनुष्यों के नेत्रों को आनन्द देने वाली, अपनी नाभि की गहराई से तथा शरीर के मध्य में स्थित त्रिवलियों की विचित्रता से समस्त सुन्दर स्त्रियों के बीच अत्यधिक सुशोभित होने लगी। वक्षःस्थल पर अत्यन्त नील चूचुक से युक्त कठोर गोल और स्थूल स्तनों का भार धारण करने से वह कन्या ऐसी सुन्दर लगती थी मानो "अमृत-रस" का घट गिरकर कही नष्ट न हो जाये, इस भय से इन्द्रनील मणि की मजबूत मुहर से युक्त देदीप्यमान सुवर्ण के दो कलश ही धारण कर रही हो। शिरीष के फूल के समान कोमल मोटी और उत्तम कन्धों से युक्त उत्तम कमल की कौंति के समूह के समान लाल हथेली रूपी पल्लवों से सहित, कुरुबक के फूल के समान लाल एवं सुन्दर नख-रूपी पुष्पों से सुशोभित तथा कोशों का आवरण करने वाली अंगुलियों से युक्त भुजा रूपी लताओं से वह अत्यधिक सुशोभित होने लगी। कोमल शंख के समान कंठ, ठुड्डी और अधरोष्ठ रूपी बिम्बीफल, प्रकृष्ट हास्य से युक्त श्वेत कपोल, कुटिल भौंहे, ललाट तट एवं द्विगुणित कोमल नीलकमल से उत्तम 'डण्ठल के समान मानो कानों को धारण करने वाली और सफेद, काले तथा विशाल नेत्रों से सहित वह कन्या चिरकाल तक अत्यधिक सुशोभित होने लगी।१५ ___एक दिन शरीर-धारिणी सरस्वती के समान उस कन्या को बलदेव के पुत्रों ने आकर नमस्कार किया तथा जाते समय उद्दण्डता पूर्ण स्वभाव से "चिपटी नाक वाली" कह कर चिढ़ा दिया। इस पर एकान्त में उसने दर्पण में अपना प्रतिबिम्ब देखा, जिससे वह लज्जित हो विरक्त हो गई। - तदनन्तर उसने सुव्रता नामक गणिनी के चरणों की शरण प्राप्त की। एक बार उसने व्रतधर नामक मुनि से अपने कुरूप के बारे में पूछा कि-"यह मेरे पूर्व भव के किस पाप का फल है?" मुनि ने उसे उसका पूर्वभव सुनाया तथा कहा कि पूर्वभव में तू पुरुष था तथा तूने एक मुनि पर गाड़ी चला दी थी, जिससे उनकी नाक चिपक गयी। तेरी कुरूपता उसी की फलश्रुति है। 'गुरु के ऐसे वचन सुन उसने समस्त बन्धुओं को छोड़ काले केशों को उखाड़ कर आर्यिका का व्रत धारण कर लिया। वह व्रत-गुण, संयम तथा उपवास आदि तपों से विशुद्ध भावनाओं को प्राप्त करने लगी। तदनन्तर एक दिन वह सहधर्मिणियों के साथ विन्ध्याचल के