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________________ श्री कृष्ण द्वारा पाण्डवों पर कुपित होना :___ जब श्री कृष्ण द्रौपदी को पद्मनाभ से छुड़ाकर वापस ले आये उस समय श्री कृष्ण तो समुद्र तट पर विश्राम करने लगे परन्तु पाण्डव चले गये। पाण्डवों ने नौका के द्वारा गंगा को पार किया तथा वे दक्षिण तट पर ठहरे। भीम का स्वभाव क्रीड़ा करने का था अतः उसने इस पार आने के बाद नौका को तट पर छिपा दिया। पीछे जब द्रौपदी के साथ श्री कृष्ण आये और उन्होंने पाण्डवों से पूछा कि, आप लोग गंगा को किस तरह पार हुए हैं तो श्री कृष्ण की चेष्टा को जानने के इच्छुक भीम ने कहा कि, हम लोग भुजाओं से तैर कर आये हैं। श्री कृष्ण भीम के कथन को सत्य मान गंगा को पार करने की शीघ्रता करने लगे। श्री कृष्ण ने घोड़ों और सारथी के सहित रथ को एक हाथ में उठा लिया तथा दो जंघाओं से गंगा को इस तरह पार कर लिया जिस तरह मानो वह घोंटू बराबर ही हो। रथमुद्धृत्य हस्तेन साश्वसारथिमच्युतः। जानुदघ्नमिवोत्तीर्णस्तां जंघाभ्यां भुजेन च॥६४ तदनन्तर आश्चर्यचकित और आनन्दित हो पाण्डवों ने शीघ्र ही सामने जाकर नम्रीभूत हो श्री कृष्ण का आलिंगन किया तथा उनकी अपूर्व शक्ति से परिचित हो वे उनकी स्तुति करने लगे। तत्पश्चात् भीम ने स्वयं कहा "यह तो मैंने हँसी की थी।" यह सुन श्री कृष्ण उसी समय पाण्डवों से विरक्तता को प्राप्त हो गये। उन्होंने पाण्डवों को फटकारते हुए कहा कि, अरे निन्द्य पाण्डवो ! मैंने संसार में तुम लोगों के देखते-देखते अनेक बार अमानुषिक कार्य किये हैं। फिर इस गंगा पार करने में कौन सी बात मेरी परीक्षा करने में समर्थ थी। इस प्रकार वे पाण्डवों को कहकर उनके साथ हस्तिनापुर गये। वहाँ सुभद्रा के पुत्र आर्य-सूनु को समस्त राज्य प्रदान कर दिया एवं पाण्डवों को क्रोध वश उन्होंने वहाँ से विदा किया। तदनन्तर पाण्डवों ने दक्षिणी समुद्र तट पर पाण्डु-मथुरा नाम की नगरी बसायी तथा शेष जीवन वहाँ निवास किया। द्वारिका-विनाश व कृष्ण की काल प्राप्ति के समाचार सुन पाण्डवों को संसार से विरक्ति हो गयी। उन्होंने अरिष्टनेमि से दीक्षा ली एवं आजीवन तप किया। उपर्युक्त प्रकार से हरिवंशपुराण में वर्णित श्री कृष्ण का पाण्डवों को सहाय, द्रौपदी का हरण, श्री कृष्ण द्वारा उसे छुड़ाना एवं श्री कृष्ण का पाण्डवों पर कुपित होना इत्यादि सभी प्रसंग जैन आगमों के पाण्डवों सम्बन्धी वृत्तान्तों का ही विस्तृत रूप है। जिनसेनाचार्य ने श्री कृष्ण चरित के अन्य प्रसंगों की भाँति इस प्रसंग में भी पूर्ण रूप से जैन-परम्परा की छाप खड़ी करने हेतु प्रसंगों को कल्पना के आधार पर नवीन एवं विस्तृत स्वरूप प्रदान किया है। - - % 3D
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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