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________________ सुखपूर्वक लालन-पालन किया। वे अत्यन्त स्वरूपवान थे राथा धीरे-धीरे वृद्धि को प्राप्त होने लगे। षडप्यविघ्ना वसुदेवपुत्राः स्वपुण्यरक्ष्यास्त्वलकातिहृद्याः। पुरोक्तसंज्ञाः सुखलालितास्ते शनैरवर्धन्त ततोऽतिरूपाः॥४३ तदुपरान्त देवकी ने श्रवण नक्षत्र में भाद्रमास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि के पवित्र दिन सातवें ही मास में अलक्षित रूप से एक पुत्र को जन्म दिया, जो कृष्ण के नाम से प्रसिद्ध हुआ। यह बालक शंख, चक्र आदि उत्तमोत्तम लक्षणों युक्त एवं महानीलमणि के समान देदीप्यमान था। इस बालक को वसुदेव वृन्दावन में सुनन्द के यहाँ पहुँचा कर आये तथा उसी समय यशोदा से उत्पन्न उसकी पुत्री को ले आये। कंस प्रसूति के समाचार सुन प्रसूतिका गृह में गया। वहाँ निर्दोष कन्या को देख कर उसका क्रोध दूर हो गया परन्तु कदाचित् इसका पति मेरा शत्रु हो सकता है, यह सोचकर उस की नाक हाथ से मसल कर चपटी कर दी। उपर्युक्त विवरणानुसार श्री कृष्ण के छः भाई उनसे बड़े थे जिनका अलका सेठानी के यहाँ लालन-पालन हो रहा था। समयानुसार जब अरिष्टनेमि ने दीक्षा धारण कर कैवल्य को प्राप्त किया एवं जब से धर्मोपदेश के लिए विहार करने लगे, तब से एक बार मलय नामक देश में आये। वहाँ वे उसके भद्रिलपुर नगर के सहस्राम्रवन में विराजमान हो गये। वहाँ उस समय राजा नगरवासी तथा सुदृष्टि सेठ व अलका सेठानी के यहाँ रहने वाले देवकी के छहों पुत्र आये। धर्मसभा में अरिष्टनेमि का धर्मरूपी अमृत सुनकर वे छहों भाई विरक्त हो गये एवं मोक्षलक्ष्मी प्रदान करने वाली दीक्षा को प्राप्त हो गये। उन्होंने घोर तप किया। तदनन्तर वे अरिष्टनेमि के साथ विहार करते हुए गिरनार पर आये तथा वहाँ सुशोभित होने लगे। . एक बार श्री कृष्ण आदि यादवों के साथ द्वारिकावासी गिरनार पर आये तथा नेमिनाथ से धर्मोपदेश सुनने के लिए वहाँ रहने लगे। एक दिन धर्मकथा पूर्ण होने पर देवकी ने हाथ जोड़कर भगवान् अरिष्टनेमि से पूछा कि, आज दो मुनियों का जो युगल मेरे भवन में तीन बार आया तथा तीनों बार आहार लिया, उन्हें देखकर मेरे मन में उन सबमें पुत्रों के समान प्रेम उत्पन्न हुआ है। देवकी के इस प्रकार कहने पर भगवान् ने कहा कि, छहों मुनि आपके पुत्र हैं जिनको आपने श्री कृष्ण के पहले तीन युगल के रूप में उत्पन्न किया था। इत्युक्तेऽकथयन्नाथस्तनपास्ते षडप्यमी। युग्मत्रयतया सूता भवत्या कृष्णपूर्वजाः॥४ ___ अरिष्टनेमि ने आगे कहा कि इन सबने भ्रदिलपुर में सुदृष्टि सेठ एवं अलका सेठानी के यहाँ लालन-पालन प्राप्त किया, धर्म श्रवण कर इन्होंने मेरी शिष्यता ग्रहण कर सिद्धि
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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