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________________ वहाँ कंस की स्त्री जीवद्यशा नमस्कार कर विनम्रता दिखाती हुई उनके सामने खड़ी हो गई तथा क्रीड़ा भाव से कहने लगी कि, यह आपकी बहिन देवकी का आनन्दवस्त्र है, उसे देखिये। मुनि संसार की स्थिति को जानने वाले थे उन्होंने कहा कि, तूं हँसी कर रही है परन्तु यह तेरी बड़ी मूर्खता है। तू दुःखदार : शोक के स्थान पर आनन्द प्राप्त कर रही है। तू यह निश्चित समझ कि इस देवकी के गर्भ से जो पुत्र होगा, वह तेरे पति व पिता को मारने वाला होगा। यह ऐसी होनहार है कि इसे कोई टाल नहीं सकता। भविता यो हि देवक्या गर्भेऽवश्यमसौ शिशुः। . . पत्युः पितुश्च ते मृत्युरितीयं भवितव्यता॥१ मुनि के ऐसे वचन सुन जीवद्यशा भयभीत हो उठी। उसकी आँखों से आँसू निकलने लगे। वह अपने पति के पास गई तथा कहने लगी कि-मुनि के वचन सत्य निकलते हैं, यह विश्वास जमाकर उसने समस्त समाचार कह सुनाया। यह वृत्तान्त सुन कंस को शंका हो गई। वह तत्क्षण सत्यवादी वसुदेव के पास गया। उन्हें विश्वास में ले यह वर माँगा कि 'प्रसूति के समय देवकी मेरे ही घर में निवास करे।' वसुदेव ने निर्बुद्धि होकर कंस को यह वरदान दे दिया। उन्हें कोई शंका नहीं थी। बाद में जब उन्हें इस वृत्तान्त का पता चला, तब वे अत्यन्त दु:खी हुए। उसी समय देवकी के साथ ऋद्धिधारक अतिमुक्तक मुनि के पास गये। उन्हें प्रणाम कर, आशीर्वचन लिया। वसुदेव ने अपने पुत्र के बारे में "जो कंस को मारने वाला था" पूछा। मुनि ने वसुदेव को सम्पूर्ण पूर्वजन्म का वृत्तान्त कह सुनाया तथा उन्होंने कहा कि देवकी के क्रमशः नृपदत्त, देवपाल, अनीकदत्त, अनीकपाल, शत्रुन तथा नित्यशत्रु नाम के छः पुत्र होंगे। ये सभी पुत्र अत्यन्त सदृश एवं समान रूप के धारक होंगे। ये सभी नेमिनाथ की शिष्यत्व ग्रहण कर मोक्ष जायेंगे। देवकी के जो सातवाँ पुत्र होगा वह अत्यन्त वीर होगा एवं इस भरत क्षेत्र में नौंवा नारायण होगा। यह वृत्तान्त सुन वसुदेव देवकी के साथ अत्यन्त हर्ष को प्राप्त हुए। तदुपरान्त उन्होंने मुनिराज से अरिष्टनेमि का चरित्र सुना एवं बहुत प्रसन्नता के साथ घर लौट आये। पहले के समान वसुदेव-देवकी मथुरा में रहने लगे तथा मृत्यु की शंका से शंकित कंस उनकी निरन्तर सेवा शुश्रूषा करने लगा। तदनन्तर देवकी के युगल पुत्र उत्पन्न हुए, तब इन्द्र की आज्ञा से सुनैगम नाम का देव उन उत्तम युगल पुत्रों को उठाकर सुभद्रिल नगर के सेठ सुदृष्टि के यहाँ पहुँचा आया। उसी समय अलका के दो युगल पुत्र भाग्यवश उत्पन्न होते ही मर गये थे, उन्हें नैगम देव उठा लाया एवं देवकी के प्रसूति गृह में रख आया। कंस ने शंका के साथ उन दोनों मृत बालकों को देखा तथा उनके पैर पकड़कर शिलातल पर पछाड़ दिया। तदन्तर देवकी ने क्रम-क्रम से दो युगल और उत्पन्न किये। देव ने उन्हें भी अलका सेठानी के पास भेज दिया। उस सेठानी ने छहों पुत्रों का
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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