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________________ प्राप्त की है। इस पर देवकी ने उन मुनियों को नमस्कार किया एवं श्री कृष्ण आदि समस्त यादवों ने उनकी स्तुति की। देवकी को यथास्थिति की जानकारी मिलने पर वह अत्यधिक दुःखी हुई क्योंकि वह सोचने लगी, कि सात पुत्रों को जन्म देकर भी किसी का बाल्य सुख तक अनुभव न कर सकी। गजकुमार : तदनन्तर देवकी ने श्री कृष्ण के पश्चात् देवकृपा से गजकुमार नाम का दूसरा पुत्र उत्पन्न किया, जो वासुदेव के समान कांति का धारक था। वह श्री कृष्ण को अत्यन्त प्रिय था एवं अत्यन्त शुभ था। ___ इतश्च वसुदेवाभं वासुदेवमनः प्रियम्। ___ सुतं गजकुमाराख्यं देवकी सुषुवे शुभम्॥५ ___ जब कृष्ण का अनुज सहोदर गजकुमार कन्याओं के मन को हरण करने वाले यौवन को प्राप्त हुआ, तब श्री कृष्ण ने उत्तमोत्तम राजकुमारियों के साथ उसका विवाह कराया। सोमशर्मा ब्राह्मण की एक पुत्री सोमा नाम की अत्यन्त सुन्दर थी, जो उसकी क्षत्रिय स्त्री से उत्पन्न हुई थी। श्री कृष्ण ने गजकुमार के लिए उसका भी वरण किया। जब उसके विवाह के प्रारम्भ का समय आया तो सभी यादव अत्यन्त प्रसन्न हुए। उसी समय नेमिनाथ विहार करते हुए द्वारिका आये। नगरवासियों द्वारा नेमिनाथ की वन्दना किये जाने पर गजकुमार भी रथ पर सवार होकर नेमिनाथ की वन्दना के लिए गया। वह भगवान् को नमस्कार कर श्री कृष्ण के साथ धर्मसभा में बैठ गया। नेमिनाथ ने संसारसागर से पार उतरने का एकमात्र उपाय सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान व सम्यक् चरित्र रूपी रत्नत्रय का धर्म निरूपण किया तथा श्री कृष्ण के पूछने पर त्रिषष्टि शलाका पुरुषों का सम्पूर्ण वृत्तान्त कह सुनाया। ___गजकुमार नेमिनाथ से तीर्थंकर आदि का चरित्र सुनकर संसार से भयभीत हो गया। वह अपने स्वजनों को छोड़कर जिनेन्द्र नेमिनाथ के समीप पहुँचा और उनकी अनुमति से दीक्षा ग्रहण कर तप करने के लिए उद्यत हो गया श्रुत्वा गजकुमारोऽसौ जिनादिचरितं तथा। . विमोच्य सकलान् बन्धून् पितृपुत्रपुरस्सरान्॥ संसारभीरुरासाद्य जिनेन्द्रं प्रश्रयान्वितम्।। गृहीत्वानुमतो दीक्षां तपः कर्तुं समुद्यतः॥६ तदनन्तर किसी दिन गजकुमार मुनि रात्रि के समय एकान्त में प्रतिमायोग से विराजमान हो सब प्रकार की बाधाएँ सहन कर रहे थे कि सोमशर्मा अपनी पुत्री के त्याग से उत्पन्न क्रोध रूपी अग्नि के कणों से प्रदीप्त हो उसके पास आया। स्थिर चित्तं के धारक उस
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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