________________ अर्जुन की प्रेरणा थे। उन पर पाण्डवों का पूर्ण विश्वास था। उन्हीं की प्रेरणा से इसके युद्ध में वे प्रवृत हुए। वे स्वयं पाण्डवों की तरफ बिना शस्त्र उठाये अर्जुन के सारथी के रूप में रहे, जो उस युग में अपमानजनक था तथा दूसरी ओर अपनी समस्त सेना दुर्योधन को सुपुर्द कर दी। वे साधुजनों के परित्राण के लिए अवतरित हुए थे। अतः इनके लिए कुछ भी अपमानजनक नहीं था। महाभारत में श्री कृष्ण की अनेक अलौकिक घटनाओं का उल्लेख मिलता है। द्रौपदी-चीरहरण प्रसंग उनका उत्कृष्ट उदाहरण है, जब श्री कृष्ण ने उसके वस्त्र को अपने प्रताप से घटने ही नहीं दिया। इसी तरह अर्जुन को विराट स्वरूप के दर्शन देकर अपनी अलौकिकता का परिचय दिया। "महाभारत में श्री कृष्ण का मूल उद्देश्य धर्म की स्थापना करना है। उन्होंने लोगों की रक्षा करके अपनी. लोकदृष्टि का उन्मीलन किया है। वे आसक्तिहीन, समतापरायण एवं कर्मयोगी हैं। उनकी दिव्यता, ज्ञान-विज्ञान-सम्पन्नता आदि विश्व कल्याण से प्रेरित होकर ही प्रत्यक्ष होती है। इस दृष्टि से पूर्त्यर्थ गुण में ईश्वरत्व का आरोप होता है।" महाभारत में श्री कृष्ण के शौर्यवीर्य के दर्शन होते हैं। जीवन के प्रत्येक प्रसंग पर वे अधर्म पर धर्म की जय करवाते चलते हैं। महाभारत इस कूटनीतिज्ञ के नेतृत्व का अनुपम उदाहरण है। किस स्थान पर किस नीति से काम लेना है, वह उन्हें भली-भाँति आता था। ___कई लोग श्री कृष्ण पर महाभारत का विनाशकारी युद्ध करवाने का आरोप लगाते हैं परन्तु यह युद्ध कौरवों के पाप, दुष्कर्मों और स्वार्थों के कारण हुआ था। श्री कृष्ण तो केवल निमित्त बन गये थे। उन्होंने बीच में पड़ कर सत्य, दया, सदाचार, सभ्यता एवं संस्कृति की रक्षा की थी। श्री कृष्ण मनुष्यत्व का कल्याण और शांति स्थापित करना चाहते थे और वे इसी राजनीति के ज्ञाता थे। श्री कृष्ण का तत्त्व ज्ञान सर्वमान्य है। समस्त संसार में उनके इस तत्त्व ज्ञान की अभ्यर्थना हुई है। गीता में प्रत्येक मनुष्य को आत्म-सन्तोष के दर्शन होते हैं। यह साम्प्रदायिकता से ऊपर की वस्तु है। अखिल मानव जाति के लिए प्रकाश पुंज है। इसकी संसार की प्रत्येक भाषा में अनुवाद और व्याख्याएँ हुई हैं। स्वामी सहजानन्द सरस्वती ने गीता में मार्क्सवादी सिद्धान्तों के दर्शन किये हैं। - महाभारत में श्री कृष्ण के दो रूप निरूपित हुए हैं-एक तो देवता का रूप तथा दूसरा महापुरुष का। महाभारत का रचनाकाल अनेक विद्वानों ने 350 ई०पू० स्वीकार किया है। महाभारत एक वृहद् ग्रन्थ है जिसमें एक बहुत बड़ा भाग प्रक्षिप्त है। यह प्रक्षिप्तअंश या खिल-अंश हरिवंशपुराण कहलाता है। इसी भाग में श्री कृष्ण की लीलाओं का वर्णन किया गया है। विन्टरनिट्ज ने इसको महाभारत का प्रक्षिप्त अंश मानते हुए इसका =11