________________ सभापर्व में भीष्म ने कृष्ण को चराचर विश्व का उत्पत्ति-स्थल एवं विश्राम भूमि के रूप में माना है तथा चराचर ऋषि जगत के अस्तित्व को भी उन्हीं के लिए स्वीकार किया है।३५ महाभारत में कृष्ण के अनेक रूपों के दर्शन होते हैं। कहीं वे पाण्डवों के शांतिदूत श्यामसुन्दर हैं तो कहीं गीता में कर्म-योग की प्रधानता स्थापित करने वाले कर्मनिष्ठ / युद्ध की समाप्ति के बाद वे कुशल संयोजक की भाँति राजसूय यज्ञ में दृष्टिगोचर होते हैं तो अन्त में हमारे आगे उनका दूरदर्शिता से पूर्ण विचारक-रूप आता है।३६ महाभारत के कृष्ण को वासुदेव भी कहा गया है क्योंकि वे अपनी अलौकिक शक्ति से सभी प्राणियों को आच्छादित कर लेते हैं। स्वयं श्री कृष्ण कहते हैं कि मैं सूर्य के रूप में अपनी किरणों से समस्त विश्व को ढंक लेता हूँ एवं सभी प्राणियों में अधिवास हूँ, इसी से मुझे वासुदेव कहा गया है। गीता में भी वासुदेव नाम का समर्थन है। "वृत्तीनां वासुदेवोऽस्मि" एक अन्य स्थान पर भी कहा गया है कि जिसमें सब बसते हैं तथा जो सबमें रहता है वही वासुदेव है। इस प्रकार महाभारत में नारायण, वासुदेव और श्री कृष्ण तीनों एक ही हैं। ____ शांति पर्व में भगवान् के अवतारों का वर्णन है। वहाँ हमें कूर्म, मत्स्य, वाराह, नृसिंह, राम, सास्वत और कल्कि आदि अवतारों की कथा मिलती है। इसी पर्व में श्री कृष्ण ने स्वयं कहा है कि "सभी प्राणियों में मेरा अयन या निवास होने से मैं नारायण एवं सारे विश्व में व्याप्त होने तथा विश्व का मुझमें स्थित होने के कारण मैं ही वासुदेव हूँ। विश्व को व्याप लेने के कारण मुझे विष्णु कहते हैं / पृथ्वी, स्वर्ण और अन्तरिक्ष मैं ही हूँ, इससे मैं दामोदर कहा जाता हूँ। सूर्य, चन्द्र और अग्नि की किरणें मेरे केश हैं, इससे मैं केशव हूँ। गौ, पृथ्वी को ऊपर ले जाने के कारण मैं गोविन्द हूँ। यज्ञ का हविर्भाग ग्रहण करने के कारण हरि हूँ। सब गुणों की प्रधानता से शाश्वत और लोहे के काले फाल के रूप में पृथ्वी जोतने और रंग का काला होने से मैं कृष्ण हूँ।"३९ उपर्युक्त पंक्तियों से स्पष्ट हो जाता है कि नारायण, वासुदेव, विष्णु, दामोदर, गोविन्द, केशव और हरि आदि विभिन्न पर्याय श्री कृष्ण के ही बोधक हैं। नाम की भिन्नता होने के बावजूद भी इसके स्वरूप में किसी प्रकार का अन्तर नहीं है। महाभारत की गणना इतिहास ग्रन्थ के रूप में होती है। इसमें श्री कृष्ण ही अधिकांश घटनाओं के सूत्रधार एवं नियामक हैं। वे संधिवाहक, शांतिदूत और गीता के उपदेष्टा है तथा समदृष्टि के कारण दोनों पक्षों की सहायता करना उनका परम लक्ष्य रहा है। इस युग के वयोवृद्ध भीष्म पितामह भी श्री कृष्ण को वेद-वेदांगवेत्ता और ऋत्विक होने के कारण सबसे अधिक आदर के पात्र मानते हैं। महाभारतकार ने श्री कृष्ण को पाण्डवों का हितैषी, धर्माचारी एवं न्यायानुमोदित पक्ष का आदर्श राही माना है। कृष्ण ही