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________________ उपर्युक्त प्रकार से उपनिषदों में नारायण परमात्मा के अवबोधक बन गये एवं विष्णु के समानार्थ बन कर परम देव के रूप में प्रतिष्ठित हो गये। विष्णु का यही नारायण रूप विकास पाकर परवर्ती साहित्य में "कृष्ण" के रूप में दिखाई पड़ा। श्री कृष्ण रूप : नारायण रूप की भाँति उपनिषदों में कृष्ण-रूप निरूपित हुआ है। छान्दोग्य उपनिषद् में देवकी पुत्र श्री कृष्ण कथा का वर्णन है। यहाँ श्री कृष्ण घोर-आंगिरस के शिष्य और देवकी के पुत्र माने गये हैं। इसमें आंगिरस द्वारा अपने शिष्य श्री कृष्ण को यज्ञ शास्त्र का उपदेश सुनाने की कथा आती है। "कौशीतकी" ब्राह्मण में भी श्री कृष्ण के गुरु घोर आंगिरस की चर्चा है।३२ इन सभी नामों से एक ही व्यक्ति की व्यंजना होती है। ऐतरेय आरण्यक में कृष्ण हारीत नामक महर्षि का उल्लेख है, जिन्होंने अपने पुत्रों को वाणी रूपी संहिता की उपासना का उपदेश दिया है।३३ इसके अलावा तैत्तिरीय आरण्यक में भी श्री कृष्ण के देवत्व का उल्लेख मिलता है। उपर्युक्त विवेचनानुसार यह स्पष्ट है कि वैदिक साहित्य में किसी न किसी रूप में श्री कृष्ण का उल्लेख अवश्य मिलता है। गहनता से देखने पर वैदिक साहित्य के "कृष्णव्यक्तित्व" का क्रमिक विकास होता दिख पड़ता है। लेकिन जहाँ तक सम्पूर्ण कृष्णचरित्र के व्यवस्थित चित्रण का प्रश्न है, वह वेदों एवं उपनिषदों में हमें प्राप्त नहीं होता। महाभारत में श्री कृष्ण : वैदिक ग्रन्थों के पश्चात् श्री कृष्ण का विस्तृत वर्णन महाभारत में मिलता है। इसमें कृष्ण को परब्रह्म के रूप में स्वीकार किया गया है। श्री कृष्ण विष्णु के अवतार एवं विराट पुरुष हैं। श्री कृष्ण के पूर्व प्रचलित समस्त नामों का समन्वय करने का सुन्दर प्रयास इसी ग्रन्थ से होता है। इस काल में भागवत धर्म का पुनः उदय हुआ। इस युग में चार सम्प्रदाय थे जिसमें भागवत-धर्म परम्परा को पंचरात्र नाम मिला। इस मत की प्रमुख विशेषता थी-श्री कृष्ण-भक्ति। कृष्ण के समस्त नामों का समन्वय करते हुए एक स्तुति में कहा गया है कि- "हे. कृष्ण! तुम अदिति के पुत्र हो, इन्द्र के छोटे भाई हो, तुम विष्णु हो। तुमने ध्रुव लोक, अन्तरिक्ष तथा पृथ्वी को तीन पैरों से नाप लिया। युगान्त में सब भूतों का संहार करके तथा आत्मा में जगत को आत्मसात् करके तुम स्थित होते हो। तुम्हारे जैसे कर्म पूर्व या उत्तर काल में कोई नहीं कर सका। तुम ब्रह्म के साथ वैराग्य लोक में निवास करते हो।"३" इस स्तुति से स्पष्ट होता है कि उपेन्द्र, विष्णु, वामन और ब्रह्मा को एक ही माना गया है। यही कृष्ण ब्रज की लीला के कर्ता हैं / एक अन्य स्थान पर भी कहा गया है कि जो भगवान् नर तथा हरि हैं, वही नारायण भी। यही नारायण जगन्नियन्ता, देवाधिदेव, आदित्य, लोकपति, वासुदेव, कृष्ण के रूप में पृथ्वी पर अवतीर्ण हुए हैं।
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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