________________ निरूपित हुए हैं, उनकी सम्मति श्रीमद् भगवद् गीता में भी मिलती है। गीता में भगवान् श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा है कि मैं आदित्यों में विष्णु और देवताओं में इन्द्र हूँ।२८ इससे स्पष्ट है कि विष्णु ही आदित्य और इन्द्र के रूप में प्रसिद्ध हैं। एक अन्य स्थल में भी श्री कृष्ण ने अर्जुन को कहा है कि मैं वेदों में सामवेद एवं देवताओं में इन्द्र हूँ।२९ उपर्युक्त प्रकार से वेदों में श्री कृष्ण को मन्त्रद्रष्टा ऋषि के रूप में स्वीकार किया गया है परन्तु विष्णु और इन्द्र भी श्री कृष्ण के पर्याय रूप में ही वर्णित हुए हैं। उपनिषदों में श्री कृष्ण विष्णु रूप : वेदों के अतिरिक्त उपनिषदों, आरण्यक एवं ब्राह्मण ग्रन्थों में विष्णु रूप का क्रमिक विकास दिखाई देता है। "कठोपनिषद्" में विष्णु के परमपद की प्राप्ति ही जीवन का ध्येय कहा गया है। "मंत्रेय" में विष्णु को अन्नरूप में पोषक कहा गया है। शतपथ ब्राह्मण में विष्णु को व्यापक रूप में स्वीकार किया गया है। यह विष्णु ब्रह्म की भाँति कल्पनातीत है। शतपथ में ही विष्णु के अन्य अवतार मत्स्य, कूर्म, वाराह और वामन आदि का वर्णन है। तैत्तिरीय आरण्यक में विष्णु को नृसिंह कहा गया है। नृसिंह बावनी में इसी नाम की चर्चा है। गोपनी में भी विष्णु के दिव्य रूप का वर्णन उपलब्ध है। . भोला उपनामी एक विद्वान् ने अपनी पुस्तक श्रुतिरत्नावली में वेदों और उपनिषदों के चुने हुए मन्त्रों का संग्रह किया है, जिसमें कृष्ण विषयक मन्त्र भी हैं। इन मन्त्रों में गोप, गोपी, वेणु, नाद आदि का वर्णन मिलता है।२० __इस प्रकार उपनिषदों में विष्णु ही राम, कृष्ण, नृसिंह और नारायण के रूप में विख्यात हुए। परन्तु क्रमशः विष्णु का स्वरूप नारायण में परिवर्तित होने लगा। नारायण स्वरूप की उपनिषदों में विशद व्याख्या है। नारायण रूप : चराचर व्याप्त विष्णु की व्यापकता के आकर्षण से ही वैष्णव सम्प्रदाय ने इनके नारायण रूप को ग्रहण किया। ऋग्वेद की 10/25/5 ऋचाओं में भी नारायण का संकेत है। नर के अयन का अन्तिम लक्ष्य नारायण कहे गये हैं। मनुस्मृति में नारायण शब्द की व्याख्या की गई है कि नर का अयन होने से इसे नारायण कहा गया है। "तैत्तिरीय आरण्यक" के मत से नारायण ही वासुदेव हैं।२१ इसी आरण्यक में वासुदेव श्री कृष्ण का भी वर्णन है। "वृहदारण्यकोपनिषद्' में विष्णु को हरि कहा गया है और वासुदेव तथा हरि से नारायण का सम्बन्ध स्थापित किया गया है। शतपथ ब्राह्मण की एक कथानुसार नारायण ने एक बार स्वयं यज्ञ स्थान पर निवास कर वसुओं, रुद्रों और आदित्यों को कहीं अन्यत्र भेज दिया और यज्ञ सम्पादित कर के स्वयं सर्वव्यापी बन गये। - -