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________________ श्री कृष्ण रूप : ऋग्वेद के अनेक मन्त्रों के द्रष्टा ऋषि के रूप में श्री कृष्ण का उल्लेख मिलता है। वैदिक आख्यान के अनुसार नाग जाति के एक नेता "अदृणक" वर्ण में काला होने के कारण मरुत ऋषि द्वारा कृष्ण कहा गया है। वही बाद में लोकप्रिय होने के कारण मूल पुरुषों में गिना जाने लगा। ऋग्वेद के अष्टम मण्डलानुसार कृष्ण आंगिरस ऋषि हैं। ये अश्विनी-कुमारों को यज्ञ में सोमपान के लिए आमंत्रित करते हुए उनसे ऐश्वर्य की कामना कर रहे हैं।१६ आंगिरस का वैदिक मन्त्रों के रचयिताओं में प्रमुख स्थान था। वैदिक युग में ये आंगिरस-गोत्रीय मन्त्र गायक कवि कहलाते थ। कवि रचित विस्तृत गान को मेधा और प्रतिभा के बल पर ढूँढ़कर संकलित करने के कारण ये मन्त्रद्रष्टा ऋषि कहलाए। गायक, रचनाकार कवि और उसके संकलन कर्ता द्रष्टा ऋषि थे। ऋग्वेद के दशम मण्डल के 42 सूक्त के तृतीय अध्याय में कृष्ण-आंगिरस तीन ऋचाओं में अश्विनी कुमारों की स्तुति कर रहे हैं तथा इसी मंडल के चतुर्थ अध्याय की ग्यारह ऋचाओं में वे धन, बल, गुण इत्यादि की कामना करते हैं एवं इन्द्र की स्तुति करते हैं। इस प्रकार वेदों में श्रीकृष्ण आंगिरस ऋषि के रूप में उल्लेखित हुए हैं। श्री कृष्ण की लीलाओं के सम्बन्धित अनेक शब्दों का वर्णन भी वेदों में मिलता है। राधा, गौ२०, बृज२१, वृभभानु२२, रोहिणी२३, अर्जुन आदि शब्द इसी प्रकार के हैं परन्तु वैदिक व्याख्याओ में इन सब तत्कालीन शब्दों का अर्थ दूसरा था। गोप का अर्थ किरण है और 'ब्रज' किरणों का स्थान द्यौ है। "कृष्ण" रात्रि, "अर्जुन' दिन, "वृष्ण" बलराम अर्थ को व्यक्त करता है। प्रारम्भ में वैदिक व्याख्याओं में यही अर्थ था, परन्तु शब्दों के सतत प्रयोग एवं अर्थ परिवर्तन के कारण इनका सम्बन्ध श्री कृष्ण की लीलाओं से जोड़ दिया गया है। इस सम्बन्ध में मनु का विचार है कि सभी नामों एवं कर्मों का निर्माण वेदों से ही हुआ है।५ डॉ० हरवंशलाल शर्मा के अनुसार "इन मन्त्रों में जो नाम आये हैं उनका यद्यपि गोपाल कृष्ण से कोई सम्बन्ध नहीं है, परन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि जिस प्रकार वैदिक कृष्ण का सम्बन्ध महाभारत के कृष्ण से जोड़ दिया है उसी प्रकार इन सभी नामों का उपयोग पौराणिक युग के कृष्ण के लिए कर दिया है।"२६ __डॉ० मुंशीराम शर्मा ने भी इसी विचार का पूर्ण रूप से समर्थन करते हुए कहा है कि इस प्रकार वेदों में जो राधा, विष्णु, कृष्ण आदि के नाम आये हैं वे ऐतिहासिक व्यक्तियों के नाम नहीं हैं। ऐतिहासिक व्यक्तियों के एवं पदार्थों के नाम वेद के शब्द को देखकर रखे गये हैं। अतः स्पष्ट है कि इन शब्दों का प्रयोग अवतारों के लिए होने लगा। - ऋग्वेद के पश्चात् यजुर्वेद में भी "कृष्ण-केसी" नामक असुर को मारने वाले कृष्ण की कथा का उल्लेख मिलता है। वेदों में जो कृष्ण विष्णु और इन्द्र के रूप में
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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