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________________ सापेक्ष भी। कई प्रसंग इतिवृत्तात्मकता के भी मिलते हैं जिनमें कवि का उद्देश्य कथा की अभिव्यक्ति नहीं वरन् कृष्ण लीलाओं की गरिमा में वृद्धि करना रहा है। (2) मार्मिक प्रसंगों का चयन : मुक्तक काव्य में कवि को अधिक कहने का अवकाश नहीं होता, इसीलिए उसे जीवन क्षेत्र के ऐसे प्रसंगों का चयन करना पड़ता है जो अधिकाधिक मार्मिक हो। सूरसागर में इसी गुण के आधार पर श्री कृष्ण के सम्पूर्ण जीवन का चित्रण होने के बावजूद भी उनका बचपन तथा यौवन सर्वाधिक निरूपित है। श्री कृष्ण के बचपन के चित्रों का कवि ने सविस्तार वर्णन किया है। बालक की स्वाभाविक क्रीड़ाएँ एवं मातृहृदय की मार्मिकता देखते ही बनती है। श्री कृष्ण की किशोर-लीलाएँ भी कम मार्मिक नहीं है; उनमें माखनचोरी, पनघटलीला, चीरहरण लीला, दानलीला इत्यादि प्रसंग तो अत्यन्त मार्मिकता से ओत-प्रोत है। (3) चमत्कार विधान : काव्य में शब्दों या अर्थों के आधार पर चमत्कार विधान किया जाता है, जिसे क्रमशः शब्दगत चमत्कार और अर्थगत चमत्कार कहते हैं। सूरसागर में दोनों प्रकार के चमत्कारों की सुन्दर अभिव्यंजना है। सूर के दृष्टिकूट पद तो शब्दगत चमत्कार के अक्षय भण्डार हैं। उनके अर्थगत चमत्कारों में गोपियों की वाग्विदग्धता प्रसिद्ध ही है। कृवि को दोनों चमत्कारों के चित्रण में समान सफलता मिली है जो कवि की सम्पूर्णता को व्यक्त करते हैं। (4) अर्थगौरव : अर्थ के माध्यम से अर्थों की गरिमा का उद्घाटन करना ही कवि का लक्ष्य होता है। सूरसागर का अर्थ गौरव से मंडित होना स्वाभाविक ही है क्योंकि यह एक रससिद्ध कवि की रचना है। कवि का सम्पूर्ण काव्य भावदशाओं का सहज उच्छलन है। अतः उनके काव्य में सर्वत्र अर्थ-गौरव दृष्टिगोचर होता है। आत्मनिवेदन, वात्सल्य-वर्णन तथा श्रृंगार-वर्णन में यह अपार निष्ठा के साथ अभिव्यक्त हुआ है। (5) समाहार शक्ति : थोड़े शब्दों में अधिक भाव भरने की शक्ति को समाहार शक्ति कहते हैं। सूरसागर की अन्त:कथाओं, अप्रस्तुत योजनाओं, सांगरूपकों, वक्रोति-विधानों तथा दृष्टिकूट पदों में समाहार-शक्ति सबलता के साथ अभिव्यक्त हुई है। सालंकारता : सालंकारता का अर्थ केवल अलंकारों की समुचित योजना तक सीमित न होकर सम्पूर्ण काव्य-सौन्दर्य का परिचायक है। मुक्तक काव्य में सालंकारता का सविशेष महत्त्व होता है। % - D - - - -
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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