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________________ इस ग्रन्थ के नायक क्षत्रिय यदुकुल शिरोमणि श्री कृष्णचन्द्र हैं। जिनमें नायकत्व के सभी गुण विद्यमान हैं। वे विनयशील, सुन्दर, त्यागी, कार्य करने में कुशल, प्रिय बोलने वाले, शुद्ध भाषणपटु, उच्च वंशज, स्थिरचित्तयुवा, बुद्धिप्रद, शूर तथा तेजस्वी हैं। धीरोदात्त नायक में जो गुण होने चाहिए, वे सब गुण उनमें विद्यमान हैं। सूर के कृष्ण भगवान् होते हुए भी मनुष्य हैं। इस प्रकार सूरसागर के.पतिक्रम पर भी विचार किया जाय तो उसमें प्रबन्धात्मक की स्पष्ट झलक मिलती है। . परन्तु सूरसागर के प्रतिपाद्य सम्बन्धी शीर्षकों का विहंगावलोकन करने से यह परिलक्षित होता है कि अपने पदों की रचना करते समय सूर के समक्ष कोई सुव्यवस्थित प्रबन्ध योजना नहीं थी। उनका प्रयोजन श्री कृष्ण के जीवन चरित्र का पूर्ण तथा व्यवस्थित चित्रण करना भी नहीं था वरन् उनकी विविध लीलाओं का अधिकाधिक उद्घाटन करना था। इसी से सूरसागर में श्री कृष्ण-लीलाओं की विविधता है परन्तु कथानक की व्यापकता एवं सर्वांगीणता नहीं है जो सानुभव के लिए अनिवार्य है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने प्रबन्ध काव्यरूप का विश्लेषण करते हुए लिखा है कि प्रबन्ध काव्य में मानव-जीवन का पूर्ण दृश्य होता है। उसमें घटनाओं की सम्बन्धश्रृंखला तथा स्वाभाविक क्रम से ठीक-ठीक निर्वाह के साथ हदय को स्पर्श करने वाले, उसे नाना भावों का रसात्मक अनुभव कराने वाले प्रसंगों का समावेश होना चाहिए। इतिवृत्तमात्र के निर्वाह से रसानुभव नहीं कराया जा सकता। मुक्तकात्मक तत्त्व : 'सूर साहित्य के अधिकांश विद्वानों ने सूरसागर को निश्चित रूप से मुक्तक काव्य कहा है क्योंकि इसमें मुक्तक काव्य के पूर्वापर-निरपेक्षता, मार्मिक प्रसंगों का चयन, चमत्कार विधान, अर्थगौरव, समाहार शक्ति तथा सालंकारता आदि सभी प्रमुख तत्त्वों का समावेश मिलता है। मुक्तकात्मक काव्य के प्रमुख लक्षण तथा सूरसागर :(1) पूर्वापरनिरपेक्षता : ... मुक्तक का अर्थ है मुक्त या छूटा हुआ, अर्थात् वह रचना जिसके छंद पारस्परिक 'सम्बन्ध से मुक्त होकर भी चमत्कार विधान या रसनिष्पत्ति में समर्थ हो। प्रबन्धकाव्य में प्रबन्धात्मकता होती है, जिससे वह सरस तथा ग्राह्य बनता है, जबकि मुक्तक काव्य के सभी छंद पूर्वापर सम्बन्ध से निरपेक्ष या मुक्त होते हैं। सूरसागर के समस्त पदों में यह विशेषता सहज ही मिल जाती है। वे पूर्वापर सम्बन्ध से निरपेक्ष होते हुए भी अर्थ द्योतकता में पूर्ण तथा समर्थ है। इससे इन पदों की रसानुभूति सहजगम्य है। परन्तु सूरसागर में कहीं-कहीं ऐसे पद भी मिलते हैं जिनमें पूर्वापर से निरपेक्ष भी है तथा
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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