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________________ की दृष्टिकोण से देखें तो पुराण के भी पात्र जैन धर्म से पूर्णतया प्रभावित जान पड़ते हैं जो विविध जैन मुनियों के प्रवचन से वैराग्य-दीक्षा ग्रहण करते हैं। इस प्रकार डॉ० बलदेव उपाध्याय द्वारा बतलाये गये पुराण के दस लक्षणों के आधार पर एवं भारतीय तथा पाश्चात्य साहित्यचार्यों के पौराणिक महाकाव्य की विशेषताओं के आधार पर हरिवंशपुराण एक सफल पौराणिक महाकाव्य है। सूरसागर : सूरसागर के काव्य रूप पर विचार किया जाय तो इसके विषय में निश्चित रूप से कुछ भी कहना कठिन है क्योंकि इसमें प्रबन्धात्मक तत्त्व भी मिलते हैं तो दूसरी ओर मुक्तकात्मक तत्त्व भी। अतः इसका काव्य रूप निरूपित करने के लिए दोनों तत्त्वों के आधार पर इसका विवेचन करना आवश्यक है। प्रबन्धात्मक तत्त्व : सूरसागर में कृष्ण चरित के विविध पक्षों का सुन्दर उद्घाटन हुआ है, अतः इसमें प्रबन्धात्मक तत्त्वों का आना स्वाभाविक है। भारतीय आचार्यों के अनुसार प्रबन्धात्मक काव्य में निम्न लक्षणों का होना आवश्यक है(१) प्रबन्धात्मक काव्य का सर्गबद्ध होना आवश्यक है जो प्रबन्धत्व के गुणार्थ संधियों से युक्त हो। (2) उसका नायक पाठकों को संदेश देने वाला धीरोदात्त क्षत्रिय अथवा देवता होना चाहिए। (3) वह आठ सर्गों से बड़ा, अनेक वृत्तों (छन्दों) से युक्त होना चाहिए। (4) इसकी कथा इतिहास प्रसिद्ध होनी चाहिए अथवा सज्जनाश्रित, जिसमें जीवन, जगत तथा प्रकृति के विभिन्न अंगों के चित्रण का सुन्दर रूप आ गया हो। (5) इसमें शृंगार, वीर, शांत रस में से कोई एक रस अंगी रूप में होना चाहिए। (6) प्रकृति वर्णन के रूप में इसमें नगर वर्णन, समुद्र वर्णन, संध्या, प्रातःकाल, संग्राम, यात्रा तथा ऋतुओं का वर्णन होना चाहिए। (7) शैली में काव्य-सौष्ठव तथा काव्य के समस्त गुणों का विकसित रूप होना चाहिए। उपर्युक्त लक्षणों के आधार पर देखा जाय तो सूरसागर का कथानक भागवत से लिया गया है। यह कथानक श्री कृष्ण के जीवन की बाल-किशोर लीलाएँ हैं। सम्पूर्ण ग्रन्थ बारह स्कन्धों में विभक्त है जिसमें अनेक छन्दों का सफल प्रयोग हुआ है। इसमें प्रकृति का मनोहरी चित्रण हुआ है, जिसमें ऋतु-वर्णन वन, उपवन नदी वर्णन आदि उल्लेखनीय है।
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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