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________________ उपर्युक्त समस्त लक्षणों के आधार पर जिनसेनाचार्य की कृति हरिवंशपुराण पर पौराणिक महाकाव्य के सभी लक्षण पूर्णतया घटित होते हैं। काव्य का मुख्य रस शान्त है। काव्य का कथानक आगम ग्रन्थों से लिया गया है। यह कथानक श्री कृष्ण के जीवन से सम्बन्धित है, जो 66 सर्गों में निरूपित है। कवि ने प्रत्येक सर्ग की समानता का प्रयास रखा है। अपवाद के रूप में मात्र पाँचवा तथा साठवा सर्ग कुछ बड़े हो गये हैं। एक सर्ग में प्रमुख रूप से एक छन्द है तथा सर्गान्त में लक्षणानुसार छन्द का परिवर्तन कर दिया है। काव्य के अधिकांश भाग में वर्णन लम्बे हो गये हैं, इससे वास्तविक घटना मन्दगति से चलती है। काव्य में आरम्भ से लेकर अंत तक कथा अपने उद्देश्य को संभाले हुए है। हरिवंशपुराण के कृष्ण चरित्र वर्णन में कवि ने कहीं-कहीं पर कल्पना की ऊँची उड़ाने भरी हैं तथा साथ में अपने मन के भावों को भी आत्मसात् किया है। महाकाव्य अति संक्षिप्त नहीं होना चाहिए क्योंकि महाकाव्य एक विशालकाय वर्णन प्रधान काव्य कहा गया है। इस तत्त्व के आधार पर भी हरिवंशपुराण एक सफल विशालकाय महाकाव्य सिद्ध होता है जिसमें सर्गवार कथा दी गई है। पुराणकाव्य के लक्षणानुसार इस ग्रन्थ में धार्मिकता के साथ काव्यत्व का भी सुन्दर सामंजस्य दिखाई देता है। इसमें जैन धर्म के दार्शनिक तत्त्वों के विवेचन के साथ उत्कृष्ट काव्यरूप का निरूपण है। मुख्य रस "शान्त" होने के उपरान्त कवि ने युद्ध-वर्णनों में वीररस तथा सौन्दर्य एवं केलि-वर्णनों में श्रृंगार रस का सुन्दर समावेश किया है। अन्य रसों के निरूपण में भी यह कृति पूर्णतया सफल रही है। - हरिवंशपुराण की आधिकारिक कथा कृष्ण व अरिष्टनेमि का चरित रही है, परन्तु इसके साथ ही अनेक प्रासंगिक कथाओं का भी कवि ने सुन्दर समायोजन किया है। कहीं-कहीं तो इनका इतना गुम्फन हो गया है कि मानों मूलकथा को पकड़ना भी कठिन प्रतीत होता है। पुराणकार ने इसमें श्री कृष्ण व अरिष्टनेमि की अलौकिक, अमानवीय शक्तियों को उजागर करने का भी सफल प्रयास किया है। पुराण में अनेक सर्ग उपदेशात्मक कथ्य से भरे पड़े हैं जो अत्यधिक गहनता के साथ वर्णित है। पुराण काव्य के लक्षणानुसार जिनसेनाचार्य ने इस कृति में अनुष्टप् छन्द को प्रधानता प्रदान की है। वैसे अन्य छन्द भी यत्र-तत्र प्रयुक्त हुए हैं परन्तु मुख्य छन्द अनुष्टुप् ही है। इतना ही नहीं, सृष्टि की उत्पत्ति, विनाश तथा वंशोत्पत्ति का भी कवि ने इसमें सुन्दर चित्रण किया है। कृति के प्रथम चार सर्गों में सृष्टि की उत्पत्ति, विकास, विनाश का विस्तृत वर्णन उपलब्ध होता है। इसके अलावा हरिवंश, कुरुवंश तथा जरासंध के वंश का भी कवि ने विशद वर्णन किया है। - ... हरिवंशपुराण में अनेक स्तुतियों की योजना का भी सफल चित्रण हुआ है। अनेक स्थलों पर जिनेन्द्र अरिष्टनेमि की स्तुति का वर्णन कवि ने मनोयोग से किया है। धार्मिकता =301
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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