________________ सूरसागर में प्रयुक्त छन्द : महाकवि सूर का सम्बन्ध प्राचीन हिन्दी साहित्य से है अतः इन्होंने अपनी कृति सूरसागर में मांत्रिक, वर्णिक व मिश्र सभी प्रकार के छन्दों का सुन्दर प्रयोग किया है। सूरसागर से, छन्दोविधान का उनका ज्ञान अपरिमित था, यह बात निर्विवाद सिद्ध होती है। छन्द प्रयोग पर कवि का विलक्षण अधिकार है। सूर साहित्य में छन्दों के अनुसंधाता डॉ० गौरीशंकर मिश्र "द्विजेन्द्र" ने सूरसागर में प्रयुक्त छन्दों की जो तालिका दी है, वह इस प्रकार है(१) सम-छन्द : लीला, तोमर, सखी, कज्जल, चौपई, चौपाई, पद्धरि, चन्द्र, रति-वल्लभ, योगकल्प, कुंडली, प्रणय, रास, कुंडल, उपमित, उपमान, अवतार, रजनी, हीर, रोला, रूपमाला, सारस, मुक्तामणि, विष्णुपद, गीतिका, गीता,सरसी सार, माधव, मालती, मरहटा-माधवी, ताटक उत्कंठा, वीरछन्द, समान सवैया, जलतरंग, वदनसवैया, विश्वभरण लीलापति, अरुणजयी, प्रतिपाल, द्वितीय, झूलना, हंसालं, करखा, प्रभाती, मानवती, मदनशत्या, विजया प्रफुल्लित, मदनहर शुभांग काममोहिता, विनय, अमर्षिता, नटनागर, प्रबोधन, हरिप्रिया, हरिप्रीता, हरिवल्लभा। (2) अर्द्धसम छन्द-दोहा, दोहकीय।६ (3) मिश्र छन्द-सम तथा सम के मिश्रण से बने छन्द : ___ लीला + तोमर, लीला + हीर, चौबाला + चौपई, चौबाला + चौपाई, चौपाई + चौपाइ, चौपाई + उपवदनक, चौपाई + हरिगीतिका, प्रणय + कुंडल, उल्लास + सुखदा, उपमित + उपमान, उल्लास + गीतिका, उल्लास + सरसी, रजनी + रूपमाला, रजनी + मधुरजनी, रूपमाला + गीता, रूपमाला + समान सवैया, रोला + समानसवैया, विष्णुपद + सार, विष्णुपद + ताटक, गीता + सरसी, गीतिका + सार, सरसी + सार, सरसी + ताटंक, सरसी + वीर, सरसी + समान सवैया, सार + मरहटा माधवी, सार + ताटंक, सार + वीर, सार + समान सवैया, झूलना + हंसाल, झूलना + करखा, लीला + महानुभाव + चौपाई, सखी + चौपाई + हरिगीतिका, चौबाला + चौपाई + चौपाई, चौबाला + चौपाई + उपवदनक, चौपाई + गीतिका + हरिगीतिका, रूपमाला + गीता + गीतिका, विष्णुपद + सरसी + सार, सरसी + सार + ताटंक, सरसी + सार + समान सवैया, करखा + हंसाल + झूलना, चौपाई + चौबाला + चौपाई + उल्लाला, चौपाई + पादाकुलक + योगकल्प + सार, चौपाई + उपवदनक + गीतिका + हरिगीतिका। अर्द्धसम और सम के मिश्रण से बने छंद :दोहा + रोला, दोहा + मुक्तामणि, दोहा + विष्णुपद, दोहा + सरसी, दोहा + -277=