________________ 85. सूरसागर पद सं० 1522 - पृ० 86. सूरसागर पद सं० 4210 - पृ० 1346 87. सूरसागर पद सं० 46 - पृ० 16 88. जैन साहित्य में श्री कृष्ण - डॉ० महावीर कोटिया - पृ० 89. जैन साहित्य में श्री कृष्ण - डॉ० महावीर कोटिया - पृ० 81 90. हरिवंशपुराण का सांस्कृतिक अध्ययन - डॉ० पी०सी० जैन - पृ० 50 91. हरिवंशपुराण - 52/63 - पृ० 60 92. कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छतं समाः। "यजुर्वेद" 93. सुखस्य दुःखस्य न कोऽपि दाता। परो ददातीति कुबुद्धिरेषा। "अध्यात्म रामायण" 94. कर्मप्रधान विश्वकरिराखा, जो जस करहि सो तस फल चाखा। रामचरित मानस-तुलसीदास 95. सूरसागर पद सं० 25 - पृ० 96. सूरसागर पद सं० 252 - पृ० 18 97. सूरसागर पद सं० 148 - पृ० 49 98. सूरसागर पद सं० 155 - पृ० 51 99. हरिवंशपुराण - सर्ग 58/298 - पृ० 691 100. हरिवंशपुराण - सर्ग 58/191 - पृ० 680 101. हरिवंशपुराण - सर्ग 18/37-39 - पृ० 264 102. बृहदारण्यकोपनिषद् - 3/2/13 103. सूरसागर पद 100 - पृ० 32 104. श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम्। अर्चनं वंदनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम्॥ भागवत - 7/5/23 105. सूरसागर-पद 150 - पृ० 49 106. हरिवंशपुराण - सर्ग 58/13 - पृ० 661 107.. हरिवंशपुराण - सर्ग 58/204 से 210 - पृ० 681-82 108. हरिवंशपुराण - .सर्ग 58/211 - पृ० 682 109. हरिवंशपुराण - सर्ग 58/212 - पृ० 682 110. हरिवंशपुराण - सर्ग 58/213 - पृ० 682 111. अष्टछाप और वल्लभ सम्प्रदाय - डॉ० दीनदयाल गुप्त - पृ० 776 112.. अष्टछाप और वल्लभ सम्प्रदाय - डॉ. दीनदयाल गुप्त - पृ० 497 113. अष्टछाप और वल्लभ सम्प्रदाय - डॉ० दीनदयाल गुप्त - पृ० 498 114. सूरसागर ,पद सं० 1791 - पृ० 662