________________ 115. सूरसागर पद सं० 1006 - पृ० 608 116. सूरसागर पद सं० 1664 - पृ० 620 117. सूरसागर पद सं० 1064 - पृ० 423 118. श्री कृष्ण कथा कोष - डॉ० रामशरण गुप्त - पृ० 159 119. सूर और उनका साहित्य - डॉ० हरवंशलाल शर्मा - पृ० 315 120. राधा वल्लभ सम्प्रदाय सिद्धान्त व साहित्य - डॉ. विजयेन्द्र स्नातक - पृ० 270-271 121. वैदिक विज्ञान भारतीय संस्कृति - गिरिधर शर्मा चतुर्वेदी - पृ० 258 122. The Faundation of Indian Culture. 123. हरिवंशपुराण सर्ग 35/65-66 - पृ० 456 124. अष्टछाप और वल्लभ सम्प्रदाय - डॉ. दीनदयाल गुप्त - पृ० 586 125. सूरसागर पद सं० 1673 - पृ० 623 126. हिन्दी कृष्ण काव्य में भक्ति और वेदान्त - डॉ० संतोष पाराशर - पृ० 161 127. सूरसागर पद सं० 1672 - पृ० 623 128. हिन्दी कृष्ण काव्य में भक्ति और वेदान्त - डॉ० संतोष पाराशर - पृ० 162 129. सूरसागर पद सं० 1110 - पृ० 431 130. सूरसागर पद सं० 4776 - पृ० 1494 131. सूरसागर स्कन्ध 10 132. तजि तीरथ हरि राधिका, तन दूति करि अनुराग। जेहि ब्रज केलि निकुंज मग, पग-पग होति प्रयाग॥ महाकवि बिहारी 133. सूरदास व्यक्तित्व - कृतित्व - पृ० 74 134. गुर्जर जैनकवियों की हिन्दी साहित्य की देन - डॉ० हरीश शुक्ला - पृ० 39 135. भारतीय दर्शन - डॉ० पारसनाथ द्विवेदी - पृ० 51 136. यस्य सर्वत्र समता नयेषु तनयेष्विव। तस्याऽनेकान्तवादस्य स्व न्यूनाधिकशेमुषी॥ तेन स्याद्वादमालम्ब्य सर्वदर्शनतुल्यताम्। मोक्षो देशविशेषेण यः पश्यति स शास्त्रवित्।। माध्वस्थमेव शास्त्रार्थो येन तच्चारु सिद्धयति / स एव धर्मवादः स्याद्वाद बालिशवल्गनम् / / माध्यस्थसहितं हृयेकपदज्ञानमपि प्रभा। शास्त्रकोटिवृथैवान्या तथा चोक्तं महात्मना / ज्ञानसार उपाध्याय यशोविजय - "धर्म और दर्शन" - ले० देवेन्द्रमुनि शास्त्री - पृ० 93 -