________________ 59. 56. हिन्दी कृष्ण काव्य में भक्ति और वेदान्त - डॉ० संतोष पाराशर - पृ० 151 57. हिन्दी कृष्ण काव्य में भक्ति और वेदान्त - डॉ० संतोष पाराशर - पृ० 151 58. सूरसागर पद सं० 4518 - पृ० 1424 हिन्दी कृष्ण काव्य में भक्ति और वेदान्त - डॉ० संतोष पाराशर - पृ० 60. सूरसागर पद सं० 4165 - पृ० 1335 61. सूरसागर पद सं० 349 - पृ० 116 62. जैन धर्म और दर्शन - देवेन्द्रमुनि शास्त्री - पृ० 83 63. हरिवंशपुराण सर्ग 58/303 - पृ० 692 64. सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः। तत्त्वार्थ-सूत्र प्रथम सूत्र .. 65. विद्विद्भिः सेवितः सद्भिर्नित्यमद्वेषरागिभिः। हृदयेनामनुज्ञातो यो धर्मस्तन्निबोधते॥ मनुस्मृति 2/1 66. श्रद्धावान् लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः॥ गीता 4/39 हरिवंशपुराण - 58/116 - पृ० 672 68. हरिवंशपुराण - 58/118 से 122 - पृ० 673 69. हरिवंशपुराण - 58/125 - पृ० 673 सूरसागर पद सं० 4300 - पृ० 1369 71. बृहदारण्यक शांकर भाष्य - 2/5/19 72. सूरसागर पद सं० 621 - पृ० 256 73. सूरसागर पद सं० 621 - पृ० 256 74. सूरसागर पद सं० 37 - पृ० 279 75. सूरसागर पद सं० 37 - पृ० 279 76. सूरसागर पद सं० 37 - पृ० 279 77. सूरसागर पद सं० 1522 - पृ० 572 78. हरिवंशपुराण का सांस्कृतिक अध्ययन - ले० पी०सी० जैन - पृ० 50 79. धर्म और दर्शन - देवेन्द्र मुनि शास्त्री - पृ० 50 80. भारतीय दर्शन - डॉ० पारसनाथ त्रिवेदी - पृ० 68. 81. हरिवंशपुराण - सर्ग 58/10 - पृ० 661 82. यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥ गीता 2/1 83. सूरसागर पद सं० 621 - पृ० 259 84. सूरसारावली पृ० 2 70. = 926