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________________ ज्वालाओं के समूह से महल जल रहे थे. श्री कृष्ण व पलराम उस दृश्य को देखकर बहुत देर तक रोते रहे तथा तदनन्तर दक्षिण दिशा की ओर तले। उस देव ने बालक, स्त्री, पशु एवं वृद्धजनों से व्याप्त तथा अनेक द्वारों से शोभायमान द्वारिका नगर को छह मास में भस्म कर नष्ट कर डाला। इस प्रकार द्वारिका के विनाश के साथ समस्त यादव-वंश का नाश हो गया। श्री कृष्ण का परमधाम गमन : यादवों के विनाश के बाद बचे हुए श्री कृष्ण व बलराम भी काल गति के अनुसार परमधाम को सिधारे। दोनों कृतियों में इस प्रसंग को भी पूर्व-प्रसंगों की भाँति कुछ भिन्नता के साथ निरूपित किया है। सूरसागर में इस प्रसंग का स्पष्ट एवं विस्तृत वर्णन नहीं मिलता है परन्तु कवि ने यादवों के नाश एवं श्री कृष्ण के परमधाम गमन के पश्चात् श्री कृष्ण विहीन द्वारिका का हृदय विदारक वर्णन किया है। ब्राह्मण परम्परा के अनुसार जब श्री कृष्ण ने देखा कि बलराम जी परमधाम चले गये हैं, तब वे सोचते-विचारते, वन में घूमने लगे। वे एक वृक्ष के नीचे बैठकर अतीत की घटनाओं, गान्धारी के शाप, झूठी खीर को शरीर में लगाने के समय दुर्वासा द्वारा कही गई बातें, अंधकवृष्णि व कुरुकुल के विनाश के सम्बन्ध में सोचने लगे तथा वे अपनी इन्द्रियों की वृत्तियों का निरोध करने लगे। . उस समय उस वन में जरा नामक व्याध मृगों का शिकार करने आया। उसने पेड़ के नीचे बैठे श्री कृष्ण को मृग समझकर उन पर बाण मारा। बाण श्री कृष्ण के पैर के तलवे में लगा, उससे वे घायल हो गये। व्याध दौड़कर श्री कृष्ण के चरणों में गिर पड़ा। इस पर श्री कृष्ण ने उसे आश्वासन दिया और अपने परमधाम को चले गये। सूरसागर में हरिविहीन द्वारिका को देखकर अर्जुन की मनो-व्यथा का सुन्दर चित्रण मिलता है। हरि बिनु को पुरवै मो स्वारथ? मीडंत हाथ सीस धुनि ढोरत-रुदन करत नृप पारथ। थकि हस्त चरन गति थाकि अरु थाक्यो पुरुषारथ // 191 तब अर्जुन पुनः हस्तिनापुर जाते हैं। उस समय पाण्डव उनसे द्वारिका के समाचार पूछते हैं, तब अर्जुन उनसे कहते हैं कि सभी यादव आपस में लड़कर मर गये हैं और श्री कृष्ण भी परमधाम गमन कर गये हैं। श्री कृष्ण के बिना अब हम अनाथ हो गये हैं। अर्जुन कह्यौ सबै लरि मुए। हरि बिनु सब अनाथ हम हुए। तब अर्जुन नैननि जल डारि। - - 198=
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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