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________________ में साम्य है परन्तु पाण्डवों का अज्ञातवास के पश्चात् पुनः हस्तिनापुर जाना, कौरवों की ईर्ष्या से द्वारिका- गमन, द्वारिका पर जरासंध का युद्ध, वहाँ कौरवों का जरासंध के पक्ष में तथा पाण्डवों का श्री कृष्ण के पक्ष में युद्ध में शामिल होना, श्री कृष्ण द्वारा जरासंधवध, दुर्योधन का वैराग्य एवं दीक्षा ग्रहण इत्यादि अनेक प्रसंग कवि की मौलिकता पर आधारित है। इसके अलावा जिनसेनाचार्य ने द्रौपदी के पाँच पति होने की बात स्वीकार नहीं की है। उन्होंने स्पष्ट लिखा है कि द्रौपदी अर्जुन की स्त्री थी। उसमें युधिष्ठिर तथा भीम की बहू जैसी बुद्धि थी तथा सहदेव एवं नकूल उसे माता के समान मानते थे। .. . स्नुषाबुद्धिरभूदस्यां ज्येष्ठयोरर्जुनस्त्रियाम्। ... द्रौपद्यां यमलस्यापि मातरीवानुवर्तनम्॥१७७४६-१५० जुए के समय युधिष्ठिर अपना राज-पाट एवं द्रौपदी को नहीं हारा था। न ही दुःशासन ने द्रौपदी के वस्त्रहरण का प्रयास किया था। पाण्डव किसी शर्त के अनुसार वन को नहीं गये थे वरन् हार के क्षोभ के कारण उन्होंने यह कृत्य किया था। हरिवंशपुराण के अनुसार पाण्डवों ने अज्ञातवास के पश्चात् पुनः अपने राज्य को प्राप्त किया था। कौरवों तथा पाण्डवों के बीच ईर्ष्या-द्वेष था परन्तु उन्होंने आपस में युद्ध नहीं किया वरन् जरासंध श्री कृष्ण के बीच युद्ध में उन्होंने भाग लिया था। इस प्रकार यह समस्त प्रसंग सूरसागर से भिन्न दृष्टिकोण पर आधारित है। - दोनों कवियों को अपनी विशाल परम्परा विरासत में मिली है। वे इस परम्परानुसार श्री कृष्ण चरित्र का वर्णन करते चले हैं। सूरसागर में महाभारत के युद्ध में कृष्ण की भूमिका का जो वर्णन मिलता है, उसमें हमें उनके कूटनीतिज्ञ तथा गीता के उपदेश के समय आध्यात्मिक पुरुष के दर्शन हैं, जिसका हरिवंशपुराण में मर्याप्त अभाव है। पुराणकार ने महाभारत के युद्ध को भी स्वीकार न कर इस प्रसंग को नवीन रूप प्रदान किया है जो श्री कृष्ण के नौवें नारायण तथा शलाकापुरुष का द्योतक है। जरासंध-वध : श्री कृष्ण द्वारा किये गये पराक्रमों में जरासंध-वध का उल्लेख मिलता है। सूरसागर के अनुसार जरासंध ने अपनी कन्याओं का विवाह कंस के साथ किया था। जब जरासंध ने श्री कृष्ण द्वारा कंस को मारने का समाचार सुना, तब उसने श्री कृष्ण को मारने के लिए कई बार यादवों पर आक्रमण किये। उधर इन्द्रप्रस्थ नरेश युधिष्ठिर ने जब राजसूय यज्ञ के लिए श्री कृष्ण से सलाह पूछी तब उन्होंने बताया कि जब तक जरासंध का वध नहीं किया जाता, तब तक राजसूय यज्ञ निर्विघ्न पूर्ण नहीं हो सकता। जरासंध उस समय का महान प्रतापी वीर सम्राट था, जिसने सैकड़ों राजाओं पर विजय प्राप्त कर उन्हें कैद कर लिया था।
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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