________________ तत्पश्चात् जरासंध को मारने के लिए श्री कृष्ण, भीम व अर्जुन ने ब्राह्मण का वेश धारण किया तथा जरासंध के द्वार पर जाकर उससे द्वन्द्व युद्ध माँगा। जरासंध ने यह बात स्वीकार कर ली। यद्यपि उसने श्री कृष्ण के कपट को जान लिया था, तथापि अपने वचन के लिए उसने भीम के साथ गदा युद्ध स्वीकार किया। भीम तथा जरासंध के बीच सत्ताईस दिनों तक भयंकर गदायुद्ध चला परन्तु कोई किसी को पराजित न कर सका। अन्त में श्री कृष्ण ने एक तिनके को चीरकर भीम को इशारा किया। तब भीम ने जरासंध को चीरकर उसके दो टुकड़े कर दिये। स्याम तृन चीरि दिखराइ दियौ भीम को, भीम तब हरषि ताको पछारयौ। जरा जरासंध की संधि जोरयौ हुतो, भीम ता संधि को चीरि डारयो॥१७८ तदनन्तर श्री कृष्ण ने समस्त राजाओं को मुक्त किया जो जरासंध के यहाँ कैद थे। उन्होंने सहदेव को वहाँ का राज्य सौंपा तथा वे पुनः इन्द्रप्रस्थ लौट आये। दिगम्बर जैनाचार्य जिनसेन ने भी श्री कृष्ण द्वारा जरासंध वध का उल्लेख किया है। हरिवंशपुराण के अनुसार जब श्री कृष्ण ने कंस का वध कर दिया। उस समय अपनी पुत्री जीवयशा के विलाप को सुनकर जरासंध अपने भाई अपराजित को श्री कृष्ण के साथ संग्राम करने भेजा। परन्तु यह श्री कृष्ण के हाथों मारा गया। इस पर जरासंध ने क्रोधित हो यादवों पर आक्रमण किया। उस समय समस्त यादव परस्पर मंत्रणा कर पश्चिम दिशा को प्रयाण कर चुके थे। जरासंध ने यादवों का पीछा किया लेकिन एक देवी के छल कपट से वह समस्त यादवों का नाश मानकर अपने स्थान लौट आया। तत्पश्चात् श्री कृष्ण ने द्वारिका को अपनी राजधानी बनाया। इस कथा का उल्लेख. हम पिछले पृष्ठों में कर चुके हैं। / तदनन्तर एक दिन जरासंध को जब इस बात की जानकारी मिली की श्री कृष्ण का नाश नहीं हुआ है वरन् वे तो द्वारिका में राज सुख प्राप्त कर रहे हैं तब उसने पुनः द्वारिका पर चढ़ाई की। वह विशाल सेना लेकर गया जिसमें अनेक राजा, महाराजा शामिल थे। उसने द्वारिका को चारों ओर से घेर लिया। वह यादवों से कहने लगा कि मैंने आपका क्या अनिष्ट किया है, जिससे भयभीत हो तुम समुद्र के मध्य बस गये। इस पर श्री कृष्ण कुपित हो गये। दोनों ओर भयंकर युद्ध आरम्भ हो गया। हाथी-हाथियों के साथ, घोड़े-घोड़ों के साथ, रथ-रथों के साथ तथा पैदल-पैदलों के साथ युद्ध करने लगे। गजा गजैः समं लग्नास्तुरंगास्तुरगैः सह।। रथा रथैः समं योद्धं पत्तयः पत्तिभिः सह॥१७९५१-१६