________________ तदनन्तर कीचक को वैराग्य उत्पन्न हो गया, उसने जैनधर्म में दीक्षा ग्रहण कर ली। इस प्रकार अज्ञातवास पूर्ण होने के पश्चात् पाण्डव पुनः हस्तिनापुर आये तथा वहाँ सुखपूर्वक रहने लगे। ततः पूरितसर्वाशाः सर्वाथामृतवर्षिणः। तेऽप्यूनुष्पदमत्युच्चैः प्रावृषेण्या इवाम्बुदाः // 173 47-4 तदनन्तर दुर्योधन पुनः पाण्डवों से ईर्ष्या करने लगा। संधि में दोष उत्पन्न होने पर भीम, अर्जुन, आदि भाई कौरवों के विरुद्ध उत्तेजित होने लगे परन्तु युधिष्ठिर ने उन्हें शांत किया। पाण्डव कभी भी कौरवों का अहित नहीं चाहते थे। अतः उन्होंने अपनी राजधानी को छोड़ कर माता, भाई एवं परिवार के साथ दक्षिण दिशा को प्रयाण किया। चलते-चलते वे विन्ध्यवन पहुंचे, जहाँ उन्होंने महात्मा विदुर की स्तुति की तथा उनसे आशीर्वाद प्राप्त किया। तत्पश्चात् वे द्वारिका पहुँचे। यादवों ने पाण्डवों के आगमन पर उनका भव्य स्वागत किया। समुद्रविजय आदि दशों भाइयों ने अपनी बहिन तथा भानजों को बहुत समय के बाद देखकर परमहर्ष की प्राप्ति की। नेमिनाथ, कृष्ण इत्यादि भी बहुत सन्तुष्ट हुए।७४ ___ तदनन्तर श्री कृष्ण ने उनके रहने के लिए पृथक्-पृथक् पाँच महल प्रदान किये। भोगोपभोग की सब सामग्री युक्त इन महलों में वे सुखपूर्वक रहने लगे। वहाँ युधिष्ठिर ने लक्ष्मीमती, भीम ने शेषवती, अर्जुन ने सुभद्रा, सहदेव ने विजया तथा नकुल ने रति नामक कन्या को प्राप्त किया। जिस समय जरासंध ने द्वारिका पर आक्रमण किया उस समय पाण्डव श्री कृष्ण की तरफ से युद्ध में शामिल हुए। कौरव जरासंध के पक्ष में थे। दोनों सेनाओं के बीच भयंकर युद्ध हुआ। श्री कृष्ण द्वारा यह निर्णायक युद्ध जीतने पर पाण्डवों को उन्होंने हस्तिनापुर का राज्य दिया। तत्पश्चात् पाण्डवों ने श्री कृष्ण से विदा लेकर हस्तिनापुर को प्रयाण किया। (क) श्रीहास्तिनपुरं प्रीत्या पाण्डवेभ्यः प्रियं हरि। कोशलं रुक्मनामाय रुधिरात्मजसूनवे॥७५५३/४६ . . (ख) विसृष्टाश्च यथास्थानं यातास्ते पाण्डवादयः। - आरेमुर्द्वारिकायां तु यादवास्त्रिदशा यथा॥१७६५३/४८ पाण्डवों ने अपने राज्य में सुखदायक व सुराज का संचालन किया जिससे देश के सभी वर्ग एवं सभी आश्रम आनन्द के साथ रहने लगे। उपर्युक्त विवेचनानुसार जिनसेनाचार्य ने हरिवंशपुराण में श्री कृष्ण द्वारा पाण्डवों की सहायता का जो वर्णन किया है - सूरसागर से सर्वथा भिन्न है। कौरवों की पाण्डवों से ईर्ष्या, जुआ खेलना, विराट ?ण के यहाँ अज्ञातवास इत्यादि कुछ घटनाओं