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________________ संकेत रूप में निरूपित किया है। सूरसागर में वर्णित इन प्रसंगों में द्रौपदी-सहाय, पाण्डवों का दूत कार्य, विदुर-गृह भोजन, अर्जुन दुर्योधन का श्री कृष्ण गृहगमन, भीष्म-प्रतिज्ञा, पाण्डवों के लिए चक्रधारण तथा पाण्डवों का राज्याभिषेक इत्यादि विशेष महत्त्वपूर्ण हैं। सूर ने स्वय इस बात को स्वीकार किया है कि महाभारत में इस कथा का विस्तार है परन्तु मैं श्री कृष्ण की भक्त-वत्सलता का ही वर्णन करूँगा, जो उनकी समस्त कथा का सार है। भारत माहि कथा यह विस्तृत, कहत होइ विस्तार। .. सूर भक्त-वत्सलता वरनौ, सर्व कथा को सार॥७१ सूरसागर के इस प्रसंग में श्री कृष्ण के महान राजनीतिज्ञ, कूटनीतिज्ञ एवं विशिष्ट आध्यात्मिक स्वरूप का परिचय मिलता है। यद्यपि सूर ने इस कथा को संक्षेप में ही निरूपित किया है परन्तु उनका कथा प्रवाह गतिशील रहा है। दिगम्बर जैनाचार्य जिनसेन ने भी श्री कृष्ण द्वारा पाण्डवों की सहायता का चित्रण किया है। हरिवंशपुराण के पैंतालीसवें सर्ग में पाण्डवों तथा कौरवों के वंश का वर्णन मिलता है। तदुपरान्त कवि ने कौरवों-पाण्डवों के राज्य का बंटवारा, कौरवों की पाण्डवों से ईर्ष्या, उनके घर में आग लगाने का प्रयास, युधिष्ठिर का कुसुमकोमला तथा वसन्तसुन्दरी से विवाह इत्यादि प्रसंगों का निरूपण किया है। . . - कवि ने सर्वप्रथम कौरवों व पाण्डवों की वंशात्पात्त बताकर तथा उनके राज्य के वैभव का वर्णन कर इस कथा को आगे बढ़ाया है। पुराणकार के अनुसार राज्य के बंटवारे के पश्चात् शकुनि के कहने पर दुर्योधन ने युधिष्ठिर को जुए खेलने हेतु निमंत्रित किया तथा वह युधिष्ठिर से जुए में जीत गया। हार के क्षोभ के कारण पाण्डव वहाँ से छिपकर बारह वर्ष की लम्बी अवधि हेतु राज्यपाट छोड़ हस्तिनापुर से बाहर निकल गये। जिस प्रकार चाँदनी चन्द्रमा की अनुगामी होती है उसी तरह द्रौपदी भी अपने पति अर्जुन के पीछे-पीछे गई। वे एक के बाद दूसरे वन में गये तथा वहाँ स्थित अनेक राक्षसों को युद्ध में मार गिराया तत्पश्चात् उन्होंने विराट नरेश के यहाँ अज्ञातवास में रहना स्वीकार किया। वहाँ द्रौपदी के अद्भुत सौन्दर्य को देखकर विकचा का पुत्र कीचक उसके मोह में बँध गया। उसके द्वारा धृष्टता करने पर भीम ने द्रौपदी का वेश धारण कर उसे मुक्कों के प्रहार से चूर-चूर कर दिया। वारीबन्धमिवायातं स्पर्शान्धं गन्धवारणम्। कण्ठे जग्राह बाहुभ्यां स्पर्शामीलितलोचनाम्॥ भूमौ निपात्य पादाभ्यामुरस्याक्रम्य कामिनम्। पिपेष मुष्टिनिर्घातैर्निर्घातैरिव भूधरम्॥१७२ 46/34-15
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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