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________________ युद्ध के प्रारम्भ में अपने विपक्ष में अपने ही बन्धु-बान्धवों को देखकर अर्जुन युद्ध से विमुख हो गया। इस पर श्री कृष्ण ने उसे गीता का उपदेश सुनाकर युद्ध में प्रवृत्त किया। गीता का उपदेश श्री कृष्ण की ज्ञान-गरिमा का प्रतीक है। तदनन्तर युद्ध प्रारम्भ हो गया। पाण्डवों की सेना ने कौरवों की सेना में भगदड़ी मचा दी। कौरव योद्धा हताश हो युद्ध के मैदान से लौटने लगे। __कौरवों की दुर्दशा देखकर एक दिन भीष्म पितामह ने अपनी प्रतिज्ञानुसार दुर्योधन से कहा कि अगर आज मैं श्री कृष्ण को शस्त्र ग्रहण न कराऊँ तो मुझे गंगा माँ की सौगंध है तथा मैं राजा शान्तनु का पुत्र नहीं। उन्होंने उस दिन भयंकर युद्ध किया। बाणों की वर्षा होने लगी। पार्थ अपने अस्तित्व को भूलने लगा। रुधिर की नदियाँ बहने लगीं। पाण्डवों के दल में हताशा देखकर श्री कृष्ण ने अर्जुन को भीष्म से युद्ध करने को प्रोत्साहित किया परन्तु वह भीष्म के वार को रोक नहीं पाया। इस पर श्री कृष्ण ने सुदर्शन चक्र का स्मरण किया। गोविन्द कोपि चक्र कर लीन्हौं। रथ ते उतरी अवनि आतुर है, चले चरन अतिधाए॥ मनु संचित भू भार उतारन चपल भए अकुलाए।१७० वे सुदर्शन चक्र लेकर भीष्म की ओर झपटे। उस समय वे भल गये कि उन्होंने युद्ध से पूर्व यह वचन लिया था कि-"मैं हथियार धारण नहीं करूँगा।" भीष्म विचलित नहीं हुए। उन्होंने कहा कि अगर मैं आपके हाथों मारा गया तो परलोक जाऊँगा। अर्जुन ने दौड़ कर श्री कृष्ण को शांत किया कि आपकी प्रतिज्ञा भंग हो जायेगी। मैं सौगंध खाकर कहता हूँ कि मैं कौरवों का अंत कर डालूँगा। आप अपने क्रोध को शांत कीजिये। इस प्रकार अर्जुन की शपथ पर श्री कृष्ण का रोष शांत हुआ। तदनन्तर महाभारत के इस भीषण संग्राम में श्री कृष्ण की सलाह अनुसार पाण्डवों ने कौरवों को मार गिराया तथा इस युद्ध में विजयश्री का वरण किया। तत्पश्चात् श्री कृष्ण हस्तिनापुर गये, वहाँ उन्होंने युधिष्ठिर का राज्याभिषेक करवाया। गान्धारी तथा धृतराष्ट्र को उन्होंने समझाया कि तुम्हारे पुत्रों के अन्याय के कारण महाभारत का यह विनाशकारी युद्ध हुआ। अब भारत में पुनः शांति स्थापित हो सकेगी। धृतराष्ट्र व गान्धारी ने वैराग्य धारण कर वन को गमन किया। तदुपरान्त व्यासमुनि वहाँ आये तथा उन्होंने युधिष्ठिर से अश्वमेघ यज्ञ करने को कहा। बाद में श्री कृष्ण को यज्ञ में दीक्षा ग्रहण करवा कर यज्ञानुष्ठान को पूर्ण करवाया। इस प्रकार पाण्डवों को विजय दिलवाकर, युधिष्ठिर का राज्याभिषेक करवा कर एवं उनके अश्वमेघ को पूर्ण कर श्री कृष्ण द्वारिका लौटे। सूरसागर वर्णित यह कथा श्रीमद्भागवत कथानुसार ही है। इस कथा वर्णन में सूर का मन नहीं रमा है। केवल श्री कृष्ण की भक्तवत्सलता के प्रसंगों को उल्लेखित करने हेतु उन्होंने इस कथा को - -
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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