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________________ आप आपस में संधि कर दीजिये। यह संधि आपके व मेरे हाथ में है। कौरव आपके अधीन है एवं पाण्डव मेरे अधीन हैं। श्री कृष्ण की इस बात पर धृतराष्ट्र पुत्र दुर्योधन ने उनसे कहा कि मैं अपने जीवित रहते हुए पाण्डवों को भूमि का इतना अंश भी नहीं दूंगा जिसमें बारीक सूई भी समा सके। __ इस पर श्री कृष्ण ने दुर्योधन को फटकारा कि तेरी यह कामना कभी पूर्ण नहीं होगी। तू कपट व्यवहार कर रहा है। लेकिन दुर्योधन अपनी हठ पर डटा रहा एवं उसने श्री कृष्ण को कैद करने की योजना बनाई। तदनन्तर श्री कृष्ण ने अपना विराट स्वरूप बतलाया। सारी सभा में सन्नाटा छा गया। तत्पश्चात् उन्होंने अपनी अद्भुत लीला को समेट लिया एवं पाण्डवों के पास लौट आये। श्री कृष्ण के दूत कार्य में भी महाकवि सूर ने उनकी दीनबन्धुता का एक प्रसंग वर्णित किया है कि-श्री कृष्ण ने हस्तिनापुर में दुर्योधन के महलों को छोड़कर विदुर के यहाँ बिना बुलाये जाकर उसका आतिथ्य स्वीकार किया। विदुर ने संकोचवश कहा किमहाराज आपके लायक मेरे घर में भोजन नहीं है। परन्तु हरि ने इस पर हँस कर कहा कि मुझे तो साग पत्र भी बहुत प्रिय है, उसके समान अमृत भी नहीं है। मुझे तो वही खिला दो। देखिये सूर के शब्दों में विदुर के घर भोजन ग्रहण करने का प्रसंग- : प्रभु जू तुम ही अंतरयामी। तुम लायक भोजन नहिं गृह में, मैं अरू नहीं गृह स्वामी। हरि कहयौ साग पत्र मोहि अति प्रिय, अम्रित ता सम नाहीं। बारबार सराति सूर प्रभु, साग विदुर घर खाहीं॥६० श्री कृष्ण भाव के भूखे थे। उन्हें दुर्योधन के घर का मेवा नहीं चाहिए था क्योंकि उसमें भाव का अभाव था। _ पाण्डवों के लौटने पर श्री कृष्ण ने सभी बात बताई। अब कौरवों तथा पाण्डवों के बीच युद्ध निश्चित हो गया। युद्ध से पूर्व अर्जुन एवं दुर्योधन श्री कृष्ण के पास युद्ध का निमंत्रण लेकर गये। श्री कृष्ण ने एक ओर अपनी नारायणी सेना कर दी तथा स्वयं आयुध न ग्रहण करने का वचन देकर दूसरी ओर हो गये। अर्जुन ने निःशस्त्र श्री कृष्ण को स्वीकार कर लिया। जब दुर्योधन ने नारायणी सेना तथा निःशस्त्रहरि की बात भीष्म पितामह से कही तो उन्होंने यह प्रतिज्ञा की कि मैं युद्ध में श्री कृष्ण को अस्त्रग्रहण करवा कर ही रहूँगा निजपुर आइ राइ भीष्म सो कही जो बातें हरि उचरी। सूरदास भीष्म परतिज्ञा अस्त्र गवहावन पैज करी॥१६९ महाभारत के युद्ध में श्री कृष्ण अर्जुन के सारथी बने। उन्होंने पाण्डवों को भयंकर कष्टों से बचाया। श्री कृष्ण ने घोड़ों की सेवा की तथा उन्हें पानी तक पिलाया।
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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