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________________ कृष्ण की आठ पटरानियों का उल्लेख किया है जिसमें रुक्मिणी, सत्यभामा, जाम्बवती तथा लक्ष्मणा के नाम साम्य हैं। सूरसागर में वर्णित कामिन्दी, मित्रा, सत्या व भद्रा के स्थान पर जिनसेनाचार्य ने गौरी, सुसीमा, पद्मावती तथा गान्धारी का निरूपण किया है। हरिवंशपुराण का यह प्रसंग सूरसागर की अपेक्षा विस्तृत, रोचक तथा विभिन्न प्रदेशों के भौगोलिक ज्ञान-सभर है। प्रद्युम्न जन्म और विवाह : . दोनों ही आलोच्य कृतियों में श्री कृष्ण के अनेक पुत्रों का वर्णन मिलता है, जिसमें प्रद्युम्न उल्लेखनीय है। सूरसागर के अनुसार कामदेव ने प्रद्युम्न के रूप में रुक्मिणी के उदर से जन्म लिया। उसी समय कामदेव की पत्नी रति मायादेवी के रूप में उत्पन्न होकर शम्बासुर की पत्नी बन उसके पास रहने लगी। जब प्रद्युम्न छः दिन का हुआ, उस समय शम्बासुर ने उसका हरण कर उसे समुद्र में फेंक दिया। बाल प्रद्युम्न को एक मच्छ निगल गया। उस मच्छ को एक मछुआरे ने पकड़ा तथा उसे शम्बासुर को भेंट दे दिया। पृथ्वी पर असुर संबर भयौ अति प्रबल, तिन उदधि माँहि तिहिं डारी दीन्हौं। मच्छ लियो-भच्छि सो मच्छ मछबी गयौ, __ असुरपति को सु लै भेंट कीन्हीं॥४९ - तदन्तर मायावती ने जब, उस मछली का पेट चीरा तो उसमें से वह बालक निकला। तब उसने नारदमुनि के वचको याद कर उसका पालन-पोषण किया। समयानुसार वह पूर्ण यौवन को प्राप्त हुआ, उस समय मायावती उसके रूप-लावण्य पर अनुरक्त हो गई। उसने उसके माता-पिता के बारे में जानकारी दी तथा कहा कि मैं रति हूँ तथा तू कामदेव का अवतार है। मैं तुझे विद्या सिखाती हूँ, उसके बल पर तू इस राक्षस को मार गिरा। प्रद्युम्न ने उससे सभी प्रकार की विद्या सीख कर उस असुर के साथ युद्ध किया एवं अपनी तलवार से उसे काट डाला। तत्पश्चात् वह आकाशमार्ग से शीघ्र ही द्वारिका आया। उसके आगमन से समस्त यादववंशी अत्यन्त हर्षित हुए तथा उन्होंने उस खुशी में एक भव्य उत्सव का आयोजन किया। बहुरि आकास मग जाइ द्वारावती, मातु मनमोद अति ही बढ़ायौ। भयौ जदुवंश अति रहस मनु जनम भयौ, सूर जन मंगलाचार गायौ।१५० - प्रद्युम्न के जन्म एवं उसके विद्याध्ययन की भाँति उसके विवाह का उल्लेख भी सूरसागर में मिलता है। उसके अनुसार एक बार श्री कृष्ण व बलराम प्रद्युम्न के विवाह हेतु रुक्म के यहाँ गये। वहाँ कलिंग के राजा ने बलराम को जुएँ में पराजित करने की
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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