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________________ उसे सलाह दी। कपट द्वारा लक्ष्मी ने बलराम को जुए में हरा दिया एवं वह उनकी हँसी उड़ाने लगा। इस पर क्रोधित हो बलराम ने फिर बाजी लगाई तो वे जीत गये, लेकिन रुक्मी ने कहा कि जीत मेरी हुई है। तब बलराम ने क्रुद्ध होकर रुक्मी को तथा कलिंग के राजा को मार डाला एवं उन्होंने रुक्मी की पुत्री के साथ प्रद्युम्न का विवाह कर द्वारिका को प्रयाण किया। रुक्म अरु कलिंग को राउ मारयौ प्रथम, बहुरि तिनके बहु सुभट मारे। सूर प्रभु स्याम बलराम रनजीत भए, ब्याहि प्रद्युम्न निज पुर सिधारे॥५१ हरिवंशपुराण में प्रद्युम्न-चरित्र का विस्तृत वर्णन आता है। पुराण के 43 वें सर्ग में प्रद्युम्न के जन्म की कथा आती है। इसके अनुसार प्रद्युम्न श्री कृष्ण की रानी रुक्मिणी से उत्पन्न पुत्र था। जन्म की छठी रात्रि में धूमकेतु नामक एक राक्षस ने बालक प्रद्युम्न का अपहरण किया तथा उसे एक शिला के पास रख भाग गया। उसी समय कालसंवर नामक विद्याधर ने बालक प्रद्युम्न को उठा लिया। उसकी पत्नी कंचनमाला ने उसका पालन-पोषण किया। युवा होने पर प्रद्युम्न अतिशय रूपवान, बलशाली व प्रतिभाशाली बना। उसने कालसंवर के शत्रु सिंहरथ को पराजित किया। कालसंवर के अन्य पुत्र उससे जलने लगे व उसको मारने का उपाय सोचने लगे। परन्तु प्रद्युम्न ने निर्भय होकर सभी विपत्तियों का सामना किया तथा अने विद्याएँ सीख ली। उसके रूप-सौन्दर्य एवं साहस पर कालसंवर की पत्नी कंचनमाला अनुरक्त हो गई। उसने उसे. तीन विद्याएँ सिखाई एवं उससे आलिंगन सुख हेतु अनेक काम चेष्टाएँ की। पालन-पोषण करने वाली माता स्वरूपा कंचनमाला के ऐसे विचार जान प्रद्युम्न ने उसे माता व पुत्र सम्बन्ध बतलाने का प्रयास किया। वैपरीत्यं ततो ज्ञात्वा निन्दित्वा कर्मचेष्टितम् . स मात्रपत्यसंबन्धप्रत्यायनपरोऽभवत्॥५९४७-५८ इस पर कंचनमाला ने उसे उसकी प्राप्ति का वृत्तान्त सुनाया तथा बार-बार उससे सहवास की कामना की। प्रद्युम्न उसमें सहमत नहीं हुआ तो इससे कुपित हो कंचनमाला ने कालसंवर को उसके विरुद्ध उकसाया। कालसंवर तथा प्रद्युम्न के बीच भयंकर युद्ध हुआ, तभी नारद ने आकर बीच बचाव किया। तदन्तर वास्तविक वृत्तान्त जान वह आकाशमार्ग से द्वारिका की ओर रवाना हुआ। मार्ग में हस्तिनापुर की शोभा देख वह उस नगरी को देखने नीचे उतरा। वहाँ प्रद्युम्न ने हस्तिनापुर नरेश दुर्योधन की पुत्री उदधि कुमारी से मोहित हो विवाह किया। तत्पश्चात् वह मथुरा होते हुए द्वारिका लौटा। द्वारिका आकर उसने अपनी विमाता सत्यभामा व उसके पुत्र भानुकुमार को अपनी विद्याओं से परेशान किया। ब्रह्मचारी का वेश बनाकर वह अपनी माता रुक्मिणी के पास गया तथा मायामयी रुक्मिणी बनाकर उसे कृष्ण की सभा के आगे खींचते हुए ले जाकर 1766
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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