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________________ उन दोनों की खबर दी। श्री कृष्ण खबर पाते ही बलदेव के साथ वहाँ आये तथा प्रभासतीर्थ पर, जिसकी सेना ठहरी हुई थी ऐसे समय उस नमुचि को मारकर कन्या सुसीमा का हरण कर द्वारका आये।४५ श्री कृष्ण की गौरी नामक पटरानी से विवाह का उल्लेख करते हुए जिनसेनाचार्य ने लिखा है कि-सिन्धु देश के वीतभय नामक नगर में इक्ष्वाकु वंश को बढ़ाने वाला मेरु नाम का राजा राज्य करता था। उसके गौरी नाम की एक कन्या थी, जो गौर वर्ण थी। एक बार निमित्तज्ञानी ने बताया कि यह कन्या नौवें नारायण श्री कृष्ण की पत्नी होगी। इसलिए उसके वचनों का स्मरण रखने वाला राजा मेरु ने पहले तो श्री कृष्ण के पास एक दूत भेजा एवं तदुपरान्त मृगलोचनी गौरी को भेजा। श्री कृष्ण ने मन को हरने वाली गौरी से विवाह कर उसके लिए एक सुन्दर भवन प्रदान कर दिया। परिणीय हरिौरी मनोहरणकारिणीम। - सुसीमासदनाभ्यर्णं प्रादात्प्रासादमुच्चकैः // 14644-36 ___उसी समय बलदेव के मामा हिरण्यनाभ अरिष्टपुर नगर में राज्य करते थे। उनके पद्मावती नामक उत्तम कन्या थी, जो साक्षात् लक्ष्मी जान पड़ती थी। जब उसका स्वयंवर हो रहा था उस समय श्री कृष्ण व बलराम वहाँ गये। स्वयंवर के समय युद्ध-निपुण श्री कृष्ण ने हठपूर्वक उसका हरण कर लिया तथा जिन्होंने युद्ध में शूरवीरता दिखलाई, उन्हें शीघ्र ही नष्ट कर डाला। स्वयंवरे प्रवृत्तेऽत्र हत्वा पद्मावतीं हठात्। रणशौण्डान्ममर्दाशु शौरिराहवदक्षिणः॥१४७ 44-42 हरिवंशपुराण में श्री कृष्ण की आठवीं पटरानी "गान्धारी" को बताया है। इसके साथ श्री कृष्ण के विवाह प्रसंग को उल्लेखित करते हुए जिनसेनाचार्य ने लिखा है किगान्धार देश की पुष्पकलावती नगर में एक इन्द्रगिरि नाम का राजा राज्य करता था। उसके गान्धारी नाम की एक पुत्री थी, जो गन्धर्व-कलाओं में निपुण थी। नारदमुनि द्वारा श्री कृष्ण को जब यह ज्ञात हुआ कि गान्धारी का भाई उसे हयपुरी के राजा सुमुख को दे रहा है, तब वे शीघ्र ही जाकर रणांगण में प्रतिकूल हिमगिरि को मारकर गान्धारी को हर लाये एवं उस सौम्यमुखी से विवाह कर अत्यन्त हर्षित हुए।१४८ इस प्रकार हरिवंशपुराण में श्री कृष्ण के अनेक विवाहों का उल्लेख मिलता है। प्रत्येक कन्या के साथ श्री कृष्ण के विवाह में पुराणकार ने उनकी वीरता का चित्रण किया है। जबकि सूरसागर में पाँच कन्याओं के साथ उनका विवाह भक्ति-भाव होने के कारण होता है। हरिवंशपुराण में वर्णित यह प्रसंग कवि की मौलिकता पर आधारित है। श्री कृष्ण के विवाहों का ऐसा उल्लेख अन्यत्र नहीं मिलता। दोनों कृतियों में वर्णित इस प्रसंग में पर्याप्त वैषम्य होने के बावजूद भी कुछ साम्य है। दोनों कवियों ने श्री
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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