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________________ निसि दिन रहत विमानरूढरूचि, सुर बनितानि संग सब आवत। सूर स्याम कीड़त कौतुहल, अमरनि अपनी भवन न भावत॥ तदुपरानत देवताओं को भी लालायित करने वाली सोने की नगरी द्वारिका में श्री कृष्ण का राज्याभिषेक किया गया। नगर के सभी लोग कृष्ण जैसे राजा को प्राप्त कर अत्यन्त आनन्द के साथ प्रभु गुण गाते वहाँ रहने लगे। सूरसागर में इस प्रसंग को संक्षेप में ही निरूपित किया है। जिनसेनाचार्य के हरिवंशपुराण के अनुसार श्री कृष्ण के द्वारका-गमन प्रसंग में कुछ नवीनताएँ हैं। जब जरासंध के पुत्र कालयवन एवं भाई अपराजित का श्री कृष्ण हाथों वध हो गया, तब यह समाचार सुन मगध नरेश जरासंध अत्यन्त क्रोधित हो गया। वह सारी सेना लेकर यादवों को नष्ट करने के लिए सौर्यपुर की ओर चल पड़ा। जब यादवों को यह पता चला कि जरासंध हमारे पीछे आ रहा है तो उन्होंने परस्पर मंत्रणा कर सौर्यपुर छोड़कर पश्चिम दिशा की तरफ प्रयाण किया। विन्ध्याचल के एक वन में एक देवी ने कृत्रिम चिताएँ जलाकर तथा यादवों के नष्ट होने के मिथ्या समाचार देकर जरासंध को वापस कर दिया। जरासंध वापस लौटकर मृतक जनों को श्रद्धांजलि अर्पित कर कृत-कृत्य की तरह निश्चिन्त रहने लगा। . द्राग् निवृत्य निजं स्थानं साऽध्यास्य सह बान्धवैः। विपन्नेभ्यो जलं दत्त्वा कृतकृत्य इव स्थितः॥१२७ उधर सौधर्मेन्द्र की आज्ञा से गौतम नामक शक्तिशाली देव ने समुद्र को शीघ्र ही हटा दिया तथा तदनन्तर श्री कृष्ण के पुण्य और नेमिनाथ तीर्थंकर की सातिशय भक्ति से कुबेर ने वहाँ शीघ्र ही द्वारका नाम की उत्तरपुरी की रचना कर दी। ___यह नगरी विस्तृत भू-भाग में फैली हुई थी तथा रत्न व स्वर्ण से निर्मित अनेक महलों से सुशोभित अलकापुरी के समान प्रतीत हो रही थी। हरिवंशपुराण ने द्वारका का शोभा का बड़ा मनोरम वर्णन किया है। इस सुन्दर नगरी में कुबेर ने कृष्ण का अनुपम मुकुट, उत्तम हार, कौस्तुभ मणि, दो पीत वस्त्र, लोक में अत्यन्त दुर्लभ नक्षत्रमाला आदि आभूषण, कुमुद्वति नामक गदा, शक्तिनन्दन नामक खड्ग, शाङ्ग नाम का धनुष, दो तरकश, वज्रमय बाण, सब प्रकार के शस्त्रों से युक्त एवं गरुड़ की ध्वजा युक्त दिव्य रथ प्रदान कर नारायण के रूप में स्थापित किया।२८ साथ ही बलदेव के लिए दो नील वस्त्र, माला-मुकुट, गदा, हल, मुसल, धनुषबाणों से युक्त दो तरकश, दिव्य अस्त्रों से परिपूर्ण एक ताल की ऊँची ध्वजा से सबल रथ और छत्र आदि प्रदान कर बलभद्र के रूप में स्थापित कर चले गये।
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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