________________ हैं। सूरसागर में कालयवन वध का मात्र एक पद मिलता है जबकि हरिवंशपुराण में अपेक्षाकृत इसे विस्तृतता प्रदान की गई है। पुराणकार का युद्ध वर्णन भी सुन्दर बन पड़ा है। इस प्रसंग को जिनसेनाचार्य ने अपनी नव्य मौलिकता के साथ विवेचित किया है। इतना होने पर भी दोनों कवियों की कथा मूल-रूप से साम्यता पर आधारित है। श्री कृष्ण का द्वारिका-गमन :- . ____ भागवत पुराण में उपर्युक्त प्रसंग के वर्णन में उल्लेखित है कि श्री कृष्ण ने कालयवन की सेना का संहार करके उसका समस्त धन छीनकर उसे मनुष्यों और बैलों पर लादकर द्वारका की ओर प्रस्थान किया। महाकवि सूर ने इस प्रसंग को उसी रूप में निरूपित किया है। ___कंस-वध के पश्चात् मगध नरेश जरासंध अठारह बार तेईस अक्षौहिणी सेना लेकर मथुरा पर चढ़ाई की। शत्रु-सेना का प्रबल-वेग देखकर श्री कृष्ण एवं बलराम ने मनुष्यलीलाकर उसके सामने भाग खड़े हुए। जरासंध ने उनका पीछा किया। महाकवि सूर ने जरासंध के साथ युद्ध का सजीव चित्र उपस्थित किया है मानहु मेघ घटा अति बाढ़ी। बरषत बानबूंद सेना पर महानदी रनगाढ़ी। बरन बरन बादर बनैत अरु दामिनि कर करवार। गरज निसान घोर संख ध्वनि, हय गय हींस चिघार॥ उड़त जु धुजा पताक छत्ररथ तरुवर टूटत तीर। परम निसंक समर सरिता तट, क्रीड़त यादव वीर॥१२० तत्पश्चात् श्री कृष्ण व बलराम ऊँचे प्रवर्षण पर्वत पर चढ़ गये। जरासंध ने जब यह देखा कि दोनों भाई पर्वत में छिप गए हैं तो उसने पर्वत को आग लगवा दी। श्री कृष्ण व बलराम पर्वत से नीचे कूद पड़े। परन्तु जरासंध व उसके सैनिकों ने उन्हें यह करते नहीं देखा। उस समय दोनों भाई वहाँ से चलकर समुद्र से घिरी द्वारकापुरी को चले। उधर जरासंध उन्हें जला हुआ समझकर मगध को चला गया।२६ द्वारका समुद्र के बीच में आई हुई नगरी थी। यहाँ जरासंध के आक्रमण का भय नहीं था। इसकी अनुपम शोभा थी। द्वारिका में स्थित सुन्दर बाग-तड़ाग, वन-उपवन, पशु-पक्षी सभी के मन में असीम आनन्द उत्पन्न करने वाले थे। दिन द्वारावति देखन आवत। नारदादि सनकादि महामुनि, तेउ अवलोकि प्रीति उपजावत॥ विद्रुम फटिक पची कंचन खचि, मनिमय मंदिर बने बनावत।