SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 186
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - अतः श्री कृष्ण ने छल से कालयवन का वध किया। सूरसागर के अनुसार निःशस्त्र होकर श्री कृष्ण कालयवन के सामने पहुंचे। उन्हें देखकर कालयवन श्री कृष्ण की ओर दौड़ा। श्री कृष्ण भागने लगे तो कालयवन ने उनका पीछा किया। श्री कृष्ण भागते हुए एक गुफा में छिप गये। वहाँ पर मुचुकुन्द राजा सो रहा था। उसने देवताओं से यह वरदान लिया था कि जो मुझे सोते हुए उठायेगा, वह भस्म हो जाय। कालयवन ने सोते हुए मुचुकुन्द को श्री कृष्ण समझकर उसको पैर मारा जिससे देवताओं के वरदानानुसार वह स्वयं भस्म हो गया। बार सत्तरह जरासंध मथुरा चढ़ि आयौ। गयौ सो सब दिन हारि जात घर बहुत लजायौ॥ . . तब खिस्याइ के कालयवन, अपने संग ल्यायौ। कालयवन मुचुकंदहिँ साँ, हरि भस्म करायौ। . बहुरि आइ भरमाई, अचल रिपु ताहि जरायौ।१२२ हरिवंशपुराण के अनुसार कंस वध के पश्चात् जरासंध की पुत्री जीवयशा ने अपने पिता से जाकर शिकायत की कि उसके पति को श्री कृष्ण ने मार डाला है। इस पर जरासंध ने अपने पुत्र कालयवन को श्री कृष्ण के साथ युद्ध के लिए भेजा। उसने यादवों के साथ सत्रह बार युद्ध किया परन्तु उन्हें जीत नहीं सका। अन्त में कालावर्त पर्वत पर यादवों के हाथों से उसकी मृत्यु हुई। उसके बाद राजा जरासंध ने शीघ्र ही अपने भाई अपराजित को भेजा, जो महाबलशाली एवं पराक्रमी था। उसने यादवों के याथ तीन सौ छियालीस बार युद्ध किया परन्तु अन्त में वह श्री कृष्ण के बाणों के अग्रभाग से निष्प्राण हो धरती पर गिर पड़ा। (क) चलजलधिसमानेनाभ्यमित्रं बलेन द्विपंचतुरतुरंगस्यन्दनाद्येन गत्वा। स लघु दश च सप्ताप्युग्रयुद्धानि युद्ध्वा यदुभिरतुलमालावर्तशैले ननाश // 123 36-71 (ख) तुमुलरणशतानि त्रीणि स प्रीणितास्तैर्यदुभिररिषु चत्वारिंशतं षट् च युवा। श्रमनुदमिव वीरो वीरशय्यां यशस्वी हरिशरमुखपीतप्राणसारोऽध्यशेत॥१२४३६-७३ सूरसागर में वर्णित यह प्रसंग भागवतानुसार है जिसमें कालयवन को ऋषि-पुत्र बताया है, जिसका श्री कृष्ण ने छल द्वारा वध करवाया था। जबकि हरिवंशपुराण में कालयवन को जरासंध का पुत्र बताया गया है। यही यादवों के साथ सत्रह बार युद्ध करके अन्त में मृत्यु को वरण करता है। सूरसागर के अनुसार जरासंध ने सत्रह बार मथुरा पर चढ़ाई की थी न कि कालयवन ने। पुराणकार इस प्रसंग को इससे भी आगे ले जाकर जरासंध के भाई अपराजित द्वारा तीन सौ छियालीस बार यादवों के युद्ध को स्वीकार करते
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy