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________________ धेनु नहीं पय स्रवति रूचिर मुख, चरति नहीं तृण कंद॥ विषम वियोग दहत उर सजनी, बढि रेह दुख दंद। सीतल कौन करै माई, नाहिं इहाँ ब्रज चन्द॥११२ (ख) ब्रज री मनौ अनाथ कियौ।। __ सुनि री सखी जसोदानंदन सुख संदेह दियौ॥१३ - हरिवंशपुराण में श्री कृष्ण द्वारा नंद को समझाकर ब्रज लौटाना तथा ब्रजवासियों की विरह-व्यथा का नितान्त अभाव है जबकि सूर ने इस प्रसंग को बड़े ही मनोयोग से वर्णित किया है। उद्धव की ब्रज यात्रा : जिस दिन से श्री कृष्ण ने ब्रज को छोड़ा उसी दिन से ब्रज की विकलता बढ़ गई है। सूरसागर के अनुसार श्री कृष्ण के बिना सारा ब्रज न केवल सूना हो गया बल्कि उजाड़ हो गया। ब्रज की आनन्द-प्रदान करने वाली प्रकृति भी अब भयावह लगने लगी। लोग एक क्षण भी कृष्ण को नहीं भूल रहे हैं। गोपियों को भौरों की गुनगुन एवं पपीहे के बोल से माधव की स्मृति आ घेरती है। ऐसे समय में उन्हें कृष्ण की मुरली याद आ रही है, उसे सुनने के लिए वे परेशान हैं। चन्द्रमा की शीतल चाँदनी भी उनको दाहकता प्रदान कर रही है कर धनु लै चॅदहि मारी।११४ गोपियाँ कृष्ण को व्यंग्य कसने से भी नहीं चूकती। वे कुब्जा की ओर संकेत कर कृष्ण का परिहास करती हैं- स्याम विनोदी रे मधु बनियाँ। अब हरि गोकुल काहे कौं आवत, भावति नव जोबनियाँ। वे दिन माधो भूलि मए जब, लिए फिरावति कनियाँ॥११५ वे कृष्ण को भाँति-भाँति के ताने देकर अपना हृदय शान्त करती हैं. लेकिन उनके हृदय में लगा शूल तो गड़ा ही रहता है। वे प्रतिदिन मथुरा से आने वाले मार्ग को निहारती हैं कि न जाने कब श्री कृष्ण लौट आये। मथुरा ब्रज से पाँच मील दूर होने पर भी गोपियाँ मथुरा नहीं जाती क्योंकि उनका प्रेम मान पर आधारित है। उनका प्रेम विरहाग्नि में तप कर और शुद्ध हो रहा है। वह प्रेमी की पीठ फिरना भी सहन नहीं कर सकता, स्थानान्तर तो बहुत बड़ी बात है१६ अँखिया हरि दरसन की भूखीं। कैसे रहति रूप रंच रांची, ये बतियाँ सुनि रूखीं। अवधि गनत इकटक मग जोवत, तब इतनौ नहिं झूखीं // 17
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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