________________ नंद को ब्रज लौटाना : सूरसागर के अनुसार मथुरा के राज्य सिंहासन पर उग्रसेन का राज्याभिषेक करने के पश्चात् नंद बाबा कृष्ण को ब्रज लौटने का अनुरोध करते हैं परन्तु श्री कृष्ण नंदबाबा को इन्कार करते हुए कहते हैं कि अब हमारे और आपके बीच पिता-पुत्र के सम्बन्ध का अन्त आ गया है। मैं जहाँ भी रहूँगा आपको कभी नहीं भूलूँगा। कृष्ण के इस निष्ठर उत्तर से नन्द की दशा बड़ी विचित्र हो जाती है। वे आकुल-व्याकुल हो जाते हैं। वे कहने लगते हैं कि–मोहन! मैं तुम्हारे बिना ब्रज नहीं जाऊँगा। वे मन ही मन अक्रूर पर भी क्रोध करने लगते हैं कि इसी ने यह सब चरित किया है। देखिये सूर के शब्दों में नंद की व्याकुलता यह सुनि भए व्याकुल नन्द। निठर बानी कही हरि जब, परिगए दुख फंद। निरखि मुख, मुख रेह चकित, सखा अरु सब गोप। चरित ए अक्रूर कीन्हें, करत मन मन कोप।११ नंद तथा गोप-सखाओं के अत्यन्त आग्रह को देखकर श्री कृष्ण उन्हें पुनः समझाते हैं कि ब्रज और मथुरा में अन्तर ही कितना है। मैं आपसे कहाँ दूर जा रहा हूँ, इसमें आपको व्याकुल होने की तनिक भी आवश्यकता नहीं है। इस प्रकार भाँति-भाँति से समझाकर वे नंद को गोपों सहित ब्रज लौटा देते हैं। सजल नयनों से सब विदा होते हैं। सूर का यह वर्णन अत्यन्त ही मार्मिक बन पड़ा है। यहाँ पर श्री कृष्ण के रसिक चरित्र की बजाय उनमें धीर उदात्त तथा कर्तव्यपरायण नायक का स्वरूप निरूपित हुआ है। ब्रज में दिखाई देने वाला नन्द-नन्दन का वह स्वरूप यहाँ वसुदेव तथा देवकी के साथ नहीं दिखाई देता। कृष्ण के व्यवहार में यहाँ से ही विनोद और चंचलता की जगह गंभीरता एवं उत्तरदायित्वपूर्ण भावना के दर्शन होते हैं। नन्द के ब्रज जाने पर ब्रज की दशा का महाकवि सूर ने विशद वर्णन किया है। जब मथुरा से नन्द कृष्ण को लेकर नहीं लौटते उस समय सारा ब्रज कृष्ण के विरह में व्याकुल हो उठता है। यशोदा और ब्रज के लोग नन्द से पूछने लगते हैं कि कुमार को कहाँ छोड़ा? वे यहाँ क्यों नहीं आये? हमारे जीवन-प्राण कहाँ हैं? इस प्रकार के प्रश्नों की झड़ी लग जाती है। सारे ब्रजवासियों का गला भर जाता है एवं उनकी आँखों से अश्रुओं की धाराएँ बहती हैं। यशोदा तो मूर्छित हो जाती है। सूरसागर में ब्रजवासियों के विरह का विशद निरूपण किया है (क) तब तै मिटे सब आनन्द। __ या ब्रज के सब भाग संपदा, लै जु गए नँद नँद॥ विह्वल भई जसोदा डोलति, दुखित नंद उपनंद। .