________________ साथ विशद वर्णन मिलता है। वैसे महाकवि सूर ने श्री कृष्ण की बाल-लीलाओं तथा रसिक-लीलाओं में ही अपना मन सविशेष रमाया है परन्तु कृष्ण जीवन के परवर्ती प्रसंगों को भी उन्होंने संक्षेप में विवेचित किया है। हरिवंशपुराणकार ने श्री कृष्ण के मथुरागमन के पश्चात् की घटनाओं का विस्तृत चित्रण किया है, जिनमें उनके शलाकापुरुष तथा आध्यात्मिक राजपुरुष रूप के दर्शन होते हैं। आलोच्य कृतियों की कथावस्तु के उत्तरार्द्ध में हम इन्हीं घटनाओं का निरूपण करेंगे, जो श्री कृष्ण के जीवन की अत्यधिक महत्त्वपूर्ण घटनाएँ हैं। श्री कृष्ण द्वारा उग्रसेन का राज्याभिषेक :____ सूरसागर के अनुसार मथुरा नरेश कंस का वध होने पर उनकी पत्नियाँ विलाप करने लगीं। इस पर श्री कृष्ण ने उन सबको समझाकर सांत्वना प्रदान की। वे अक्रूर को साथ लेकर कारागार में वहाँ अपने माता-पिता वसुदेव एवं देवकी से मिले। उन्होंने उग्रसेन सहित देवकी-वसुदेव को बन्धन-मुक्त कराया। कालनेमि वंशज उग्रसेन ने भगवान् श्री कृष्ण की स्तुति की। श्री कृष्ण ने उग्रसेन को मथुरा के राजसिंहासन पर बिठाया तथा उनका राज्याभिषेक किया। सारे नगर में आनन्द छा गया। श्री कृष्ण स्वयं उग्रसेन का चंवर दुलाने लगे। जो राजा-महाराजा कंस के डर से चले गये थे, वे सभी यादववंशी राजा उस समय वहाँ उपस्थित हो गये। उग्रसेन कौं दियो हरि राज। आनंद मगन सकल पुरवासी, चँवर ढुलावत श्री ब्रजराज॥ जहाँ-तहाँ तैं जादव आए कंस डरनि जे गए पराइ। मागध सूत करत सब अस्तुति, जै जै जै श्री जादवराइ॥ जुग-जग बिरद यहै चलि आयो, भए के द्वारे प्रतिहार। सूरदास प्रभु अज अविनासी भक्तनि हेत लेत अवतार॥१०९ : हरिवंशपुराण में भी यह प्रसंग उल्लेखित है कि कृष्ण ने उग्रसेन की बेड़ियाँ काटकर उन्हें मथुरा का राजा बनाया तथा वे चिरकाल तक इस राज्य-लक्ष्मी का सेवन करते रहे. गतनिगलकलंकः कंसशंकाविमुक्तश्चिरविरहकृशाङ्गं राज्यलक्ष्मीकलत्रम्। यदुनिवहनियोगादुग्रसेनस्तदानीमभजत मथुरायां कंसमाथिप्रदत्तम्॥११०३६/५१ हरिवंशपुराण में वर्णित कृष्ण का यह कृत्य मानवेतर कार्य है जबकि सूरसागर के इस प्रसंग में भी कृष्ण लीलावतारी पूर्ण पुरुषोत्तम लगते हैं। उग्रसेन द्वारा श्री कृष्ण की स्तुति में यह कहा गया है। दोनों कवियों का अपना भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण है और उसी के प्रकाश में ये प्रत्येक घटना का वर्णन करते चले हैं। -1596