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________________ दिया गया, तब कंस अपनी सारी योजनाओं को धूल-धूसरित होते देख और भी परेशान हो गया। रंग-भूमि में बैठा वह अपने प्राणों की गिनती करने लगा। वह घबराकर भागने की सोचने लगा परन्तु सामने श्री कृष्ण को देखकर उसमें वह साहस न रहा, क्योंकि श्री. कृष्ण की वीरता की धाक पहले ही जम चुकी थी। इतने में श्री कृष्ण छलांग मारकर मंच पर चढ़ गये और उसके बाल पकड़कर उसे धरती पर पटक दिया एवं मुष्टिकों के प्रहार से उसे प्राणरहित कर दिया। कंस की देह-लीला समाप्त हो गई। श्री कृष्ण के इस कृत्य पर देवताओं ने पुष्प वर्षा की। समस्त मथुरा नगरी में आनन्द ही आनन्द छा गया। जै जै धुनि तिहुँ लोक भई। मारयौ कंस धरनि उद्धरयौ, ओक-ओक आनंद भई। . . रजक मारि को दंड विभंज्यो, खेल करत गज प्रान लियौ। ... मल्ल पछारि असुर संहारे, तुरत सबनि सुरलोक दियौ॥ पुर नर नारिनि को सुख दिन्हौं, जो जैसो फल सोइ लह्यौ। सूर धन्य जदुवंस उजागर, धन्य धन्य धुनि घुमरि रहयौ // 107 हरिवंशपुराण में इस घटना को इस प्रकार से उल्लेखित किया गया है कि कंस ने जब श्री कृष्ण द्वारा चाणूर तथा बलभद्र द्वारा मुष्टिक का वध होते देखा तो वह अत्यन्त क्रुद्ध हो गया। वह अपने हाथ में तलवार लेकर जोरदार शब्द करता हुआ उठ खड़ा हुआ। श्री कृष्ण ने उसके सामने आते ही उसके हाथ से तलवार छीन ली और मजबूती से बाल पकड़कर पृथ्वी पर पटक दिया एवं उसके पैर पकड़ कर पत्थर पर पछाड़कर मार डालाअभिपतदरिहस्तात्खड्गमाक्षिप्य केशेष्वतिदृढमति गृह्याहत्य भूमौ सरोषम्। विहितपरुषपादाकर्षणस्तं शिलायां तदुचितमिति मत्वास्फाल्य हत्वा जहास॥२००३६/४५ उपर्युक्त विवेचनानुसार सूरसागर तथा हरिवंशपुराण दोनों ग्रन्थों में श्री कृष्ण द्वारा कंसवध का वर्णन मिलता है। सूरसागर में कंस घबराकर भागने की सोचता है जबकि हरिवंशपुराण में वह क्रोधित होकर तलवार ले कृष्ण को मारने दौड़ता है। महाकवि सूर ने इस वर्णन में श्री कृष्ण की अलौकिकता को प्रकट की है परन्तु जिनसेनानुसार श्री कृष्ण का यह कृत्य एक वीरोचित कार्य है। हरिवंशपुराण और सूरसागर की कथावस्तु (उत्तरार्द्ध) : श्री कृष्ण की बाल-लीलाओं तथा रसिक-लीलाओं के पश्चात् उनके जीवन का दूसरा महत्त्वपूर्ण विवेचन आता है। इस जीवन का शुभारम्भ उनके द्वारा मथुरा-नरेश कंस-वध के पश्चात् होता है। कृष्ण चरित्र का यह वह भाग है जिसमें उन्होंने महान् कूटनीतिज्ञ, योद्धा, सफल राजपुरुष तथा आध्यात्मिक महापुरुष की भूमिका निभाई है। हरिवंशपुराण तथा सूरसागर में कृष्ण चरित्र के इस भाग का कुछ साम्य-वैषम्य के =158=
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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