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________________ चाणूर एवं मुष्टिक वध : कुवलयापीड की मृत्यु का समाचार सुनकर कंस ने चाणूर तथा मुष्टिक नामक दो मल्लों को मल्लयुद्ध में उन दोनों को मारने के लिए प्रेरित किया। जब श्री कृष्ण व बलराम ने कंस की सभा में प्रवेश किया, उस समय राजगण अपने अनुचरों के साथ मंचों पर बैठे थे। कंस एक ऊँचे स्थान पर विराजमान था। सर्वप्रथम चाणूर श्री कृष्ण के पास आया। पहले दाव में श्री कृष्ण कोमल लगे। उसके मन में गर्व हो गया कि इस बालक को मारना कौनसी बड़ी बात है। किन्तु दूसरे दाँव में उसने उनके बल को जान लिया। कृष्ण ने सिंह के समान भयंकर गर्जना की। उस समय चाणूर की दशा सूर के शब्दों में द्रष्टव्य है हाँक सुनत सब कौड़ भुलानौ, थर-थराइ चानूर सकानौ। सूर स्याम महिमा तब जान्यौं, निहचै मृत्यु आपनी मान्यौ // 105 चाणूर ने निश्चय कर लिया कि आज मेरी मृत्यु आ गई है। उधर मुष्टिक पहलवान बलराम से मल्लयुद्ध करने के लिए आया। बलराम ने मुष्टिक के ऊपर मुष्टिक का प्रहार करके उसकी छाती पर घुटने से वार किया तथा उसे धराशायी कर दिया। जिनसेनाचार्य ने भी चाणूर तथा मुष्टिक वध का विवेचन किया है। जब साधारण मल्लों का युद्ध हो चुका, तब कंस ने कृष्ण से युद्ध करने के लिए चाणूर मल्ल को आज्ञा प्रदान की। श्री कृष्ण ने चाणूर को जो भीमकाय शरीर वाला था अपने वक्षस्स्थल से लगाकर भुजयंत्र के द्वारा इतना दबाया कि उससे अत्यधिक रुधिर की धारा बहने लगी और वह निष्प्राण हो गया। - जब श्री कृष्ण चाणूर से युद्ध कर रहे थे, उस समय उन्हें मारने के लिए मुष्टिक पीछे से दौड़ा। उस समय बलदेव ने उसके सिर में जोर से मुक्का मार कर प्राण रहित कर दिया कुलिशकठिनमुष्टिं मुष्टिकं पृष्ठतस्तं समपतितुसकामं राममल्लः सलीलम्। अलमलमिह तावत्तिष्ठ तिष्ठेति साशीः शिरसि करतलेनाक्रम्य चक्रे गतासुम्॥ हरिरपि हरिशक्तिः शक्तचाणूरकं तं द्विगुणितमुरसि स्वे हारिहंकारगर्भः। . व्यतनुत भुजयन्त्राक्रान्तनीरन्ध्रनिर्यबहलरुधिरधारोद्गारमुदगीर्णजीवम्॥१०६३६/४२-४३ इस प्रकार हरिवंशपुराण का यह वर्णन वीररस से परिपूर्ण है। मल्लों की उछलकूद, उनका अहंकार, उनका भीमकाय शरीर, परस्पर मुक्काबाजी आदि के दृश्य कवि ने सूक्ष्मता के साथ निरूपित किए हैं। कंसवध :जब चाणूर तथा मुष्टिक जैसे महान् मल्लों को श्री कृष्ण बलभद्र द्वारा धराशायी कर =157 - - -
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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