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________________ के वस्त्र लूट लेते हैं तथा कुब्जा पर अनुकम्पा कर उसे उर्वशी के समान युवति बना / देते हैं। कुवलयापीड वध : कुब्जा उद्धार के पश्चात् श्री कृष्ण कंस की धनुषशाला में गये और वहाँ उन्होंने धनुष को बलपूर्वक खींचा जिससे वह धनुष टूट गया। धनुष के टूटने की भयंकर आवाज से अनेक रक्षकों ने उनके ऊपर आक्रमण कर दिया परन्तु श्री कृष्ण व बलराम ने उन सैनिकों को मार भगाया।०१ धनुष-भंग तथा रक्षकों के वध की बात सुन कर कंस ने मल्ल-युद्ध का आदेश दिया तथा उन दोनों कुमारों को रंगभूमि में आमंत्रित किया। कृष्ण कंस के आमंत्रणानुसार रंगशाला में पहुँचने के लिए जाते हैं। तब एक महावत दरवाजे पर हाथी लेकर खड़ा होता है। वह कृष्ण को आता देखकर उस "कुवलयापीड" हाथी को आगे बढ़ाता है। श्री कृष्ण उसके इरादे को तत्काल जान जाते हैं एवं हाथी की सूंड पकड़कर उसे धरती पर पटक देते हैं तथा उसके दाँत तोड़कर अस्त्र-शस्त्र बना देते हैं। (क) क्रोध गजराज गजपाल कीन्हौं। गरजि-घुमरात मद भार गंडनि स्रवन, पवन नै बेग तिहि समय चीन्हौं।०२ (ख) हँसत हँसत स्याम प्रबल-कुबलया संहारयौ। तुरत दंत लिए उपारि, कंधनि पर चले धारि, निरखत नर नारि मुदित चक्रित गज मारयौ // 103 सूर ने कृष्ण व बलराम का हाथी के साथ युद्ध, कंस की रंगभूमि, लोगों की उत्सुकता तथा कृष्ण बलराम की सुन्दरता इत्यादि का भी इस प्रसंग में भावपूर्ण चित्रण किया है। श्री कृष्ण का कुवलयापीड हाथी के साथ युद्ध वर्णन तो देखते ही बनता है। ___हरिवंशपुराण के अनुसार जब दोनों भाई बलराम तथा श्री कृष्ण कंस की रंगशाला के द्वार पहुँचे तो कंस की आज्ञा से उन पर "चम्पक" तथा "पादाभार" नामक दो हाथी एक साथ हूल दिये। उस समय बलभद्र ने चम्पक हाथी को तथा श्री कृष्ण ने "पादाभार" हाथी को मार गिराया तथा उसके दाँत उखाड़ दिये- . नगरमभिविशन्तौ द्वारितौ वारणेन्द्रावविरतमदलेखामण्डितापाण्डुगण्डौ। युगपदरिनियोगादापतन्तौ विदित्वा तुतुषतुरिव दृष्ट्वा युद्धरंगादिमल्लौ॥ सललितमभितस्थौ चम्पकं शीरपाणि: फणिरिपुरवि नागं तत्र पादाभराख्यम्। अभवदभिनवं तद्विस्मयापादि पुसां नरवरकरिमल्ल द्वन्द्वयोर्द्वन्द्वयुद्धम्॥१०४३६/३२-३३ हरिवंशपुराण की अपेक्षा सूरसागर में यह प्रसंग विस्तार से मिलता है परन्तु दोनों कृतियों में श्री कृष्ण एवं बलराम द्वारा हाथियों के मारने का वीरोचित कार्य साम्य के साथ वर्णित है। हरिवंशपुराण का युद्ध वर्णन भी अत्यन्त मनोहर बन पड़ा है। - - - -
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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