________________ कंस का सन्देश सुनाया। श्री कृष्ण ने मथुरा आने की सहमति प्रकट की, इस पर सम्पूर्ण ब्रजवासी व्याकुल हो गये। जिस प्रकार आँधी का झोंका प्रशान्त महासागर में हलचल मचा देता है, उसी प्रकार श्री कृष्ण के मथुरा-गमन का समाचार सुनकर सम्पूर्ण ब्रज दुःख की महानदी में डूबने लगा। कंस के प्रति अविश्वास होने के कारण वे अत्यन्त ही कर्तव्यशून्य हो गये। सूरसागर में अक्रूर के आगमन से ब्रज की व्याकुलता का चित्रण सूर के शब्दों में द्रष्टव्य है(क) व्याकुल भए ब्रज के लोग। स्याम मन नहि नैकुँ आनत, ब्रह्मपूरन जोग।१५ (ख) देखि अक्रूर नर नारि बिलखे। धनुर्भजन यज्ञ हेत बोले इन्हैं, और डर नही सब कहि संतोषे। . . मरि व्याकुल दौरि पाइँ गहि लै परी, नंद उपनंद संग जाहु लैं के। सूर नृप क्रुर अक्रुर कुरै भए, धनुष देखन कह्यो कपटी महा है।९६ श्री कृष्ण यशोदा एवं नन्द को सांत्वना देकर उनको भाँति-भाँति से समझाकर ब्रज के सारे सम्बन्धों को एक क्षण में तोड़कर शीघ्रगामी घोड़ों से युक्त रथ में बैठकर अक्रूर के साथ चल देते हैं। रसिक शिरोमणि श्री कृष्ण प्रेमसागर में डूबी ब्रज युवतियों को अपने कर्तव्य के सामने उनके सारे प्रेम सम्बन्धों को छोड़कर मथुरा को प्रयाण करते हैं। वे कर्तव्य के आगे अपनी प्रेयसी राधा की भी सुधी तक नहीं लेते हैं। वे कर्तव्य की बलीवेदी पर अपने बालपन के सम्पूर्ण प्यार का उत्सर्ग कर देते हैं। सूरदासजी ने इस वृत्तान्त का विशद वर्णन किया है। जिनसेनाचार्य ने श्री कृष्ण के मथुरागमन का कारण इस प्रकार से वर्णित किया है कि जब श्री कृष्ण ने यमुना नदी के उस ह्रद में प्रवेश कर जहाँ अनेक विषम साँप लहलहाते थे, कमल लाकर कंस को दे दिये तो उनका वैरी कंस अत्यन्त क्रोधित हुआ एवं नंद को अपने पुत्रों के साथ मल्ल-युद्ध के लिए अविलम्ब तैयार रहने की सूचना दी। स्थिर बुद्धि के धारक वसुदेव शत्रु की इस चेष्टा को समझ गये तथा उन्होंने अपने समस्त भाइयों को शीघ्र मथुरा उपस्थित होने की खबर भेजी। वसुदेव के नौ बड़े भाई अपने रथों से मथुरा पहुँच गये। उधर बलदेव ने श्री कृष्ण को समस्त हरिवंश, पिता, गुरु, बन्धु तथा भाईयों के साथ उपस्थित होने की बात कही। तदुपरान्त उन्होंने सुन्दर वेष धारण कर कंस को मारने का निश्चय कर अतिशय भयानक मल्लों के वेग से अनेक गोपों के साथ मथुरा की ओर चल पड़े। % 3D