________________ इस प्रसंग में गोपियाँ श्री कृष्ण की समस्त शरारतों का बदला लेती दिखाई देती हैं। वे गालियाँ देकर ही चैन नहीं लेती वरन् श्री कृष्ण को पकड़कर किसी गोपी के वस्त्राभूषण पहना देती हैं। गोपियाँ कृष्ण के पैरों में नूपुर, नाक में नथ, कटि में मेखला धारण करवाती हैं एवं कंचुकि में दो पुष्प रखती हैं। जब यशोदा उन्हें वस्त्र मेवा आदि नेग देती हैं, तब गोपियाँ कृष्ण को अपनी पकड़ से छोड़ती हैं। सूर का यह वर्णन बड़ा ही प्रभावोत्पादक बन पड़ा है बेनी गूथि माँग सिर पारी, बधू बधू कहि गाई। प्यारी हँसति देखि मोहन मुख, जुवती बने बनाई। स्याम अंग कुसुमी नई सारी अपनै कर पहिराई। नंद सुनत हाँसी महरि पठाई, जसुमति धाई आई। पर मैवा दे स्याम छुड़ायौ, सूरदास बलि जाई॥९३ सूरसागर में वर्णित बसन्त लीला से ऐसा प्रतीत होता है कि श्री कृष्ण ने जैसे माखन चोरी, चीर हरण, पनघट लीला इत्यादि अवसरों पर जो उद्दण्डता एवं धृष्टताएँ की थीं, उसका गोपियों ने एक साथ बदला लिया है। सूर की गोपियाँ कृष्ण को इस प्रसंग में याद दिलाती हैं कि क्या तुम भूल गये हो जिस दिन हमारे घरों में घुसकर गोरस की चोरी की थी, यमुना तट पर हमारे वस्त्रों का हरण किया था, आज उसका दाव लेने की बारी आई है। या तो राधा गौरी के पाँव पड़ो वरना आज हम तुम्हारी दशा और भी बिगाड़ देंगी। .. . तब तुम चीर हरे जमुना तट, सुधि बिसरे माखन चोरी की। - * अब हम दाऊँ आपनौ ले है, पाउ परौ राधा गोरी की। इस प्रकार सूरसागर का यह प्रसंग बड़ा ही मनोरम बन पड़ा है। सूरसागर में श्री कृष्ण की अनेक रसिक लीलाओं का उल्लेख मिलता है जिसका हरिवंशपुराणकार ने विवेचित नहीं किया। सूर ने इन लीलाओं में संभोग शृंगार के अनेक दृश्यों का निरूपण किया है परन्तु उन सबका चित्रण करना यहाँ सम्भव नहीं हो सकता। अक्रूर का ब्रज-गमन : श्री कृष्ण द्वारा पूतना, वृषभासुर, धेनुक, प्रलम्ब इत्यादि अनेक दानवों का संहार करने पर नारद ने एक दिन मथुरा नरेश कंस को यशोदा एवं देवकी द्वारा उसके बालकों के परिवर्तन का सम्पूर्ण वृत्तान्त बता दिया। इस पर कंस ने श्री कृष्ण एवं बलराम को मारने की योजना बनाई तथा अक्रूर को बुलाकर गोकुल से श्री कृष्ण व बलराम को मथुरा लाने के लिए भेजा। तदनुसार अक्रूर गोकुल गये तथा कृष्ण व बलराम से मिलकर उन्हें