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________________ दिया है। पनघट-लीला की तरह यह लीला भी सूर की मौलिक सूझ है। पनघट पर पानी भरती युवतियों की मटकियाँ फोड़-फोड़ कर कृष्ण और भी ठीढ़ हो गये हैं। उनकी शरारतें और भी बढ़ गई हैं। जब गोकुल की स्त्रियाँ मक्खन लेकर मथुरा में बेचने. जाती हैं तो श्री कृष्ण एक दल बनाकर उन स्त्रियों को लूटना तथा लूट का माल बाँटकर खाना प्रारम्भ करते हैं। लूट रुपयों, पैसों की नहीं वरन् मक्खन की होती है। कृष्ण उन गोपियों का मार्ग रोककर उनसे पहले दान माँगा करते थे। वे गोपियों से दान याचना निम्न प्रकार से करते हैं दान दिये बिनु जान न पैहों। जब देहौं ढराइ सब गोरस तबहिं दान तुम देहौं। .. गोपियाँ कृष्ण की इस बात पर आश्चर्य व्यक्त करती है और उत्तर देती है कि तुम कब से दान माँगने वाले हो गये हो। हम तो नंद बाबा के लिहाज से तुझे छोड़ रही है वरना अपने किए का स्वाद कभी का चखा दिया होता। तुम कबके जु भए हौ दानी। मटुकी फोरि हार गहि तौरयों इन बातनि पहिचानी। नंद महर की कानि करति हौं न तु करती मेहमानी। दानलीला के प्रसंग में गोपियों तथा कृष्ण के बीच कलह बढ़ जाता है। गोपियाँ कृष्ण पर नाराज हो जाती है, कृष्ण को अनेक उपालम्भ देती हैं। कृष्ण को बुरी तरह से झिड़कती है परन्तु कृष्ण पर इन सबका प्रतिकूल प्रभाव ही पड़ता है। वे अत्यन्त खीझकर किसी के गले का हार तोड़ देते हैं, किसी की कंचुकी फाड़ डालते हैं, किसी का दहिमाखन, किसी के बर्तन नीचे लुढ़का देते हैं। कृष्ण की ऐसी शरारतों से बाज न आने पर गोपियाँ माँ यशोदा के पास जाती हैं परन्तु यशोदा उलटा उन्हें झिड़कती है मैं तुम्हरें मन की सब जानी। आपु सबै इतराति फिर तिहौं, दूषन देति स्याम को आनि। मेरो हरि कहँ दसहिँ बरस को, तुम री जोबन मद उमदानी। लाज नहीं आवति इन लँगरिनि, कैसे धौं कही आवति बानी। आपुहिँ तोरि हार चोली बँद, उर नख-घात बनाई निसानी।७२ यशोदा की ऐसी बात सुनकर गोपियाँ बेचारी क्या करतीं? वे चुपचाप वापस लौट आती हैं। कृष्ण अब अपने सखाओं के साथ गोपियों से दान माँगना प्रारम्भ करते हैं / वे उनसे कहते हैं कि-ऐसी छोटी-सी बात को बड़ी बनाना अच्छा नहीं है। हम जो तुमसे माँग रहे हैं, उसे तुरंत देकर इस झंझट से मुक्ति पाओ। इसी में तुम्हारी भलाई है
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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