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________________ (क ) जुवति इक आवति देखी स्याम। द्रुम कै ओट रहे हरि आपुन, जमुना तट गई बाम। जल हलोरि गागरि भरि नागरि, जबहीं सीस उठायौ। घर कौँ चली जाए ता पाछै सिर तैं घट ढरकायौ। चतुर ग्वालि करि गह्यौँ स्याम कौ, कनक लकुटिया पाई। औरनि सौ करि रेह अचगरी, मोसौं लगत कन्हाई। गागरि लै हँसि देत ग्वारि कर रीतौं घट नहिँ लेहाँ। सूर स्याम ह्याँ आनि देहु भरि तबहि लकुट कर देहाँ॥६७ (ख) घट भरि देहु लकुट तब देहौं / हौं हू बड़े महर की बेटी, तुम सौँ नही डरेहाँ। मेरी कनक-लकुटिया दे री, मैं भरि देहौं नीर। बिसरि गई सुधि ता दिन की, तोहिँ हरे सबन के चीर। यह बानी सुनि ग्वारि बिबस भई, तनको सुधि बिसराई। सूर लकुट कर गिरत न जानी, स्याम ठगौरी लाई।६८ * गोपिका की विचित्र दशा देखकर कृष्ण गागर भरकर उसके सिर पर रख देते हैं। वह चलने को प्रस्तुत होती है परन्तु ऐसी मनोदशा के कारण उसे रास्ते में कुछ नहीं सूझता। उसकी आँखों में तो कृष्ण ही समाये हुए हैं। वह जहाँ भी दृष्टि फैंकती है, उसे कृष्ण ही कृष्ण दीख पड़ते हैं। वह किन आँखों से अपने मार्ग को निहारे।६९ कृष्ण के प्रति गोपिका के अंतिम तल्लीनावस्था का भाव चित्रण देखते ही बनता है। ___ उपर्युक्त विवेचनानुसार सूरसागर में पनघट लीला का बड़ा ही नाटकीय एवं नैसर्गिक भाव विकास मिलता है। सूर को इस वर्णन में बड़ी सफलता मिली है। प्रतीक अर्थ : महाकवि सर ने इस प्रसंग को बड़ा ही रसिक एवं शृंगारपरक बनाया है परन्तु जहाँ तक इसके प्रतीकं अर्थ की बात है तो यह भौतिक शरीर मिट्टी का घड़ा है, जो एक कंकरी की चोट से. फूट जाता है। यह नश्वर है, क्षण-भंगुर है। इस पर गर्व कैसा? सनातन सत्य तो उस घड़े में छिपी आत्मा है जो ईश्वरीय प्रेम-रस से सिक्त है। घड़े रूपी शरीर के मिथ्याभिमान को छोड़े बिना आत्मा का प्रभु से मिलन सम्भव नहीं है। परमात्मा ही. इस घड़े से उपरान्त आत्मस्थिति का वास्तविक अनुभव कराता है। दानलीला :. भागवत इत्यादि जिन ग्रन्थों में श्री कृष्ण की लीलाओं का वर्णन है, उनमें दानलीला का प्रसंग नहीं है परन्तु सूरदासजी ने अपनी कृति में इन लीलाओं को पर्याप्त स्थान
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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