________________ श्रीमद् भागवत पुराण के अनुसार सूरसागर में कृष्ण ब्रज के लोगों को इन्द्र के स्थान पर गोवर्धन पर्वत की पूजा का प्रस्ताव रखते हैं। समस्त लोग उनकी सलाह के अनुसार गिरि की पूजा करते हैं। इस घटना से देवराज इन्द्र को बड़ा क्रोध आता है। वे ब्रजवासियों द्वारा किये गये अपमान का बदला लेने के लिए मेघ को आदेश देते हैं कि अपनी शक्ति से ब्रज में प्रलय मचा दे। बादलों द्वारा ब्रज में मूसलाधार वर्षा होने के कारण सर्वत्र हा-हाकार मच जाता है। ऐसे समय में श्री कृष्ण इस संकटापन्न अवस्था से ब्रज को बचाने के लिए अपने हाथ से गोवर्धन को उठा लेते हैं। यह गिरि गिर न पड़े ताकि सभी ग्वाले भी अपनी लकड़ियों का टेका रखते हैं। परन्तु अन्त में इन्द्र अपनी हार मानकर चला जाता है। सूरसागर में यह प्रसंग भी विस्तार लिए हुए है। ब्रज में इन्द्र की पूजा हेतु तैयारी, कृष्ण द्वारा इन्द्र पूजा का विरोध, गोवर्धन-पूजा, देवराज का क्रोध, ब्रजवासियों पर संकट इत्यादि प्रसंगों में उत्पन्न हर्ष, आश्चर्य, भय, आतंक, पश्चात्ताप आदि भावों का सुन्दर चित्रण हुआ है। ब्रज के लोगों द्वारा गिरि पूजन के लिए जाने का दृश्य द्रष्टव्य बहुत जुरे ब्रजवासी लोग। सुरपति पूजा मेटि, गोवर्धन पूजा कै संजोग। जोजन बीस एक अरु अगरौ, डेरा इंहि अनुमान। ब्रजवासी नर-नारी अंत नहिँ, मानौ सिन्धु समान। इक आवत ब्रज तैं इतही कौं, इक इतरौं ब्रज जात। नंद लिए सब ग्वाल सूर प्रभू, आइ गए तहँ प्रात॥ इन्द्र द्वारा कोप करने पर ब्रज पर आये भयंकर बरसात का वर्णन भी सूरसागर में देखते ही बनता है . (गगन ) मेघ घहरात थहरात गाता। . चपला चमचमाति चमकि नभ भहरात राखि क्यों न ब्रज नंद-ताता। करज मैं अग्र भुज बाम गिरिवर धरयौ, नभ गिरिधर भक्त काज। सूर प्रभु कहत ब्रज-बासि-बासिनिनि राखि तुम लियौ गिरिराजराज।५ हरिवंशपुराण में जिनसेनाचार्य ने कृष्ण द्वारा गोवर्धन-धारण का अन्य रूप बताया है। कंस ने कृष्ण को मारने के लिए एक देवी को भेजा। उस देवी (पिशाची) ने श्री कृष्ण को मारने के लिए ब्रज पर तीव्र पाषाणमयी वर्षा की, कृष्ण इन पत्थरों की वर्षा से तनिक भी नहीं घबराये वरन् उन्होंने गोकुल की रक्षा के लिए अपनी विशाल भुजाओं से गोवर्धन पर्वत को ऊँचा उठाया एवं उसके नीचे सब की रक्षा की।