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________________ कुदेवपाषाणमयातिवर्षैरनाकुलो व्याकुलगोकुलाय। दधार गोवर्धनमूर्ध्वमुच्चैः सभूधरं भूधरणोरुदोाम्॥१६३५/४८ सूरसागर में इस घटना से सम्बन्धित दो लीलाओं का वर्णन मिलता है। उनका यह वर्णन भी विस्तृत स्वरूप पा गया है। हरिवंशपुराण में इस घटना के सम्बन्ध में मात्र एक श्लोक मिलता है। दोनों कवियों ने श्री कृष्ण द्वारा गोवर्धन-धारण की बात कही है परन्तु गिरिधारण के कारण अलग-अलग है। हरिवंशपुराण में कृष्ण अकेले गोवर्धन को उठाते हैं जबकि सूरसागर में वे सब के सहयोग से इस भगीरथ कार्य को करते हुए दिखाई देते हैं। सूरसागर का यह प्रसंग हरिवंशपुराण से सूक्ष्म अभिव्यंजना की दृष्टि से उच्च कोटि का है। प्रतीक अर्थ : गोवर्धन-लीला का निरूपण श्री कृष्ण के महत्त्व प्रतिपादन की दृष्टि से किया गया है। यह सेवा हरिसेवा के लिए प्रोत्साहित करती है। हरि सभी संकटों से अपने स्वजनों की रक्षा करते हैं अतः सभी अवस्थाओं में हरि की सेवा करनी चाहिए। प्रसिद्ध भागवत कथा प्रवचनकार श्री डोंगरे महाराज ने इस लीला के सम्बन्ध में कहा है कि-"इस लीला का यथार्थ संदर्भ यह है कि गोवर्धन में गो का मतलब होता है-'भक्ति या ज्ञान'। गोवर्धन-लीला अर्थात् ज्ञान और भक्ति को बढ़ाने वाली लीला। ज्ञान और भक्ति को बढ़ाने से ही देह का अभिमान दूर होता है। प्रस्तुत लीला में संगठन एवं सहयोग का भी सुन्दर भाव व्यक्त हुआ है। श्री कृष्ण के साथ सभी ने उस पर्वत को उठाने में अपना सहयोग दिया था। सहयोग से कठिन कार्य भी आसानी से हल हो सकता है, उसका यह सुन्दर उदाहरण है। श्री कृष्ण द्वारा दावानल-पान : श्रीमद् भागवत में यह कथा आती है कि एक बार ब्रजवासी अपनी गायों सहित यमुना तट पर सो गये। आधी रात के समय वहाँ भयंकर आग लग गई। आकाश में अग्नि की भयंकर ज्वालाएँ उठने लगीं। आग ने उन सब को चारों ओर से घेर लिया और उन्हें जलाने लगी। तब सभी श्री कृष्ण की शरण में गये और उससे बचाने के लिए प्रार्थना करने लगे। उस समय श्री कृष्ण उस भयंकर आग का पान कर गये।८ सूरसागर में कवि ने इस घटना को अपनी मौलिकता के आधार पर कंस से सम्बन्धित बताया है। दसों दिशाओं में आग का फैलना, आग की लपटों से भयभीत ब्रजवासी, कृष्ण द्वारा सांत्वना तथा दावानल-पान करना इत्यादि प्रसंग इस लीला में निरूपित किये गये हैं। ब्रज के लोगों की अकुलाहट का दृश्य देखिये- .
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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