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________________ बार कहि सरन पुकारयौ राखि राखि गोपाल। सूरदास प्रभु प्रकट भए जब देख्यो ब्याल बिहाल॥" यद्यपि हरिवंशपुराण में यह प्रसंग सूरसागर जैसा विस्तृत नहीं है। परन्तु जिनसेनाचार्य ने इस प्रसंग को नव्य उद्भावना के आधार पर रोचकता के साथ विवेचित किया है। इस प्रसंग में कृष्ण द्वारा किये गये वीरोचित कार्य को बड़े ही भाव-पूर्ण ढंग से वर्णित किया गया है। दोनों कवियों की भाव योजना साम्य रखती है एवं कृष्ण के पराक्रम दर्शाने में दोनों कृतिकारों को समान सफलता मिली है। प्रतीकात्मकता : स्वामी रामतीर्थ ने कालियनाग दमन के प्रतीक के सम्बन्ध में अपने विचार प्रकट करते हुए इसके प्रतीकार्थ की निम्न प्रकार से विवेचना की है-"उन्होंने यमुना नदी को चित्त का, मन को झील का प्रतीक माना है। कृष्ण (ईश्वर) बनने के लिए व्यक्ति को अपने आप में ही गंभीर गोता लगाना पड़ता है। अपने चित्त की झील में उतरना पड़ता है। उसे अपने ही स्वरूप में गहरी डुबकी लगानी पड़ती है। जहाँ पर राग-द्वेष और इच्छा को जहरीले साँप का, दुनियादारी में फंसे हुए मन का, विषधर भुजंग का प्रतीक माना है। ज्यों-ज्यों मनुष्य हृदय तल में डुबकी लगाता है, उसे राग-द्वेष और इच्छा के जहरीले सो के साथ-साथ चंचल मन रूपी विषधर का सामना करना पड़ता है। साधक को अपने हृदय में रहने वाले इन सभी विषधरों का और मन रूपी भयंकर विषधर के अनेक इच्छारूपी सिरों का मर्दन करना पड़ता है। तभी साधक का हृदय स्वच्छ हो सकता है।४१ __कालिय दमन को काम-विजय की कथा भी कहा जा सकता है। "काम-जीत जगत-जीत" काम पर विजय प्राप्त करके कृष्ण जैसा देवोपम व्यक्तित्व निखर सकता है और तभी मानव में देवत्व की ओज-झलक दिखाई दे सकती है। कालिय नाग कामविकार का प्रतीक है। काम को गीता में नरक द्वार कहा गया है। 2 / / __ काम के कारण ही मनुष्य दुःखी और अशांत होता है। अनेक समस्याओं का मूलाधार यही "काम" है अतः कृष्ण अपने कर्म एवं आचरण द्वारा काम पर विजय प्राप्त करने का इस कालिय-नाग दमन द्वारा सुन्दर सन्देश प्रदान करते हैं। गोवर्धन-धारण : श्री कृष्ण चरित्र वर्णन में गोवर्धन-धारण-लीला का पर्याप्त महत्त्व है जिसमें उनकी अपरिमेय शक्ति का परिचय मिलता है। गोवर्धन-लीला का यह प्रसंग दोनों आलोच्य कृतियों में पर्याप्त अन्तर के साथ मिलता है। 134
SR No.004299
Book TitleJinsenacharya krut Harivansh Puran aur Sursagar me Shreekrishna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdayram Vaishnav
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2003
Total Pages412
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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