________________ झिरकि कै नारि दै गारि गिरिधारी तब, पूँछ पर लात दे अहि जगायौ। . उठ्यै अकुलाइ, डरपाइ खग-राइ कौं, देखि बालक गरब अति बढ़ायौ।। करत फन-घात, विष जात उतरात अति, नीर जरि जात, नहिं गात परसै। सूर के स्याम प्रभु, लोक अभिराम, बिनु जान अहिराज विष ज्वाल बरसै॥३८ हरिवंशपुराण में यह घटना कुछ इस तरह से निरूपित की गई है। मथुरा में कंस के यहाँ जब "पांचजन्य" नामक शंख, सिंहवाहिनी शैय्या एवं अजितजय नामक धनुष प्रकट हुआ, तब ज्योतिषियों के अनुसार कंस ने यह घोषणा कर दी कि जो व्यक्ति सिंहवाहिनी शैय्या पर चढ़कर अजितजय धनुष की डोरी चढ़ायेगा तथा पांचजन्य शंख को फूंकेगा, वह उत्तम होगा। कृष्ण ने यह कार्य कर दिखाया, तब कंस ने कृष्ण को मारने के उद्देश्य से गोपाल को यमुना नदी के उस स्थान से कमल लाने के लिए कहा, जहाँ जाना प्राणियों के लिए दुर्गम था क्योंकि वहाँ विषम साँप लहलहाते थे। कृष्ण उस हद में घुसकर गये, जहाँ महाभयंकर कालिय नाग रहता था। वह अत्यन्त काला था। उसके फण पर मणियों का समूह अग्नि की तिलगी के समान लग रहा था। कृष्ण ने शीघ्र ही उस नाग का मर्दन किया तथा वहाँ से कमल लेकर लौट आये। निजभुजबलशाली हेलयैवावगाह्य ह्रदमपि कुपितोत्थं कालियाहिं महोग्रम्। फणमणि किरणौधोद्गीर्णवह्निस्फुलिङ्गव्यतिकरमतिकृष्णं मंक्षु कृष्णो ममर्द। तटरुहविटपाग्रव्यग्रगोपप्रणादस्फुटहलधरधीरध्वानसंहष्टदेहः। भुजनिहतभुजंगः संसमुच्छित्य पद्मानुपतटमटति स्म द्राक् मरुत्वानिवासौ॥९३६/७-८ अन्य प्रसंगों की भाँति सूरसागर में यह प्रसंग भी विस्तृत स्वरूप से निरूपित हुआ है। सूर ने. कालिय नाग का उपद्रव, कंदुक क्रीड़ा, ग्वाल बालों के साथ नंद-यशोदा तथा ब्रजवासियों की चिन्ता, उनकी मनोव्यथा, नागपत्नियों द्वारा कृष्ण की स्तुति, नाग के साथ कृष्ण का युद्ध, उसके फणों को नाथना, नाग द्वारा क्षमा याचना, कृष्ण का यमुना-दह से बाहर आना एवं नंद-यशोदा का आनन्द इत्यादि प्रसंगों में कवि ने बड़े ही रोचक दृश्य उपस्थित किए हैं। नाथत ब्याल विलम्ब न कीन्हौं। पग सौ चाँपि घीसि बल तौरयो, नाक फोरि गहि लीन्हौ। कूदि चढ़े ताकि माथे-पर माली करत विचार।