________________ सूरसागर में गोपाल कृष्ण का सुन्दर स्वरूप निम्न प्रकार से चित्रित किया गया है जो अत्यन्त ही मनोभावन है देखि सखी बन तै जु बने ब्रज आवत हैं नन्द-नन्दन। . सिखी सिखंड सीस मुख मुरली, बन्यौ तिलक, उर चंदन। कुटिल अलक मुख चंचल लोचन निरखत अति आनंदन। कमल मध्य मनु द्वै खग खंजन-बँधे आई उड़ि फंदन॥ अरुन अधर-छबि दसन बिराजत जब गावत कल मंदन। मुक्ता मनौ नीलमनि-मय-पुट, धरें भुरकि बर बंदन।। गौप वेष गोकुल गौ चारत है हरि असुर-निकंदन। .. सूरदास प्रभु सुजत बखानत नेति नेति श्रुति छंदन // 36 . . यद्यपि दोनों कृतियों में गोचारण प्रसंग निरूपित हुआ है परन्तु सूरसागर का भाव निरूपण अत्यन्त प्रभावोत्पादक है। सूर हमें जहाँ भावविभोर कर देते हैं, वहाँ जिनसेनाचार्य के श्लोक कोरे वर्णनात्मक प्रतीत होते हैं। कालियनाग-दमन : श्री कृष्ण से सम्बन्धी यह बहुत ही लोकप्रिय घटना रही है। यह प्रसंग भी श्री कृष्ण के अलौकिक बल का परिचायक है। हरिवंशपुराण तथा सूरसागर दोनों ग्रन्थों में यह घटना कुछ भिन्नता के साथ उल्लेखित है कि कालिय नामक नाग का बाल कृष्ण ने दमन किया था। सूरसागर में इस सम्बन्ध में कथा आती है कि एक बार कृष्ण अपने सखाओं के साथ यमुना नदी के किनारे कन्दुक-क्रीड़ा करते हैं। कन्दुक खेलते-खेलते श्री कृष्ण द्वारा उनके सखा श्रीदामा की गेंद यमुना में गिर जाती है। श्रीदामा अपनी गेंद लाने के कृष्ण से हठ करते हैं तब श्री कृष्ण अपना वास्तविक उद्देश्य बताकर तटवर्ती कदम्ब से कूद कर उस भयंकर दह में प्रवेश करते हैं, जहाँ कालिय नामक भयंकर नाग रहता है।३७ नागपत्नियों के साथ उनका वार्तालाप होता है, यमुना के उस हद में योगेश्वर कृष्ण महाभयंकर कालिय नाग को नाथते हैं। नाग को नाथने पर नाग एवं नागिनियाँ श्री कृष्ण के चरणों में गिरकर वन्दना करने लगती हैं। श्री कृष्ण उन्हें यमुना छोड़कर अन्यत्र चले जाने को कहकर यमुना-दह से बाहर आते हैं। सूरसागर के अनुसार कालियनाग-दमन का महत्त्वपूर्ण कारण यह था कि यह नाग जहाँ रहता था, वहाँ का पानी पीने से पशु-पक्षी चिर-निद्रा में सो जाते थे। उस विषाक्त पानी को निरापद करने हेतु श्री कृष्ण को उस नाग का दमन करना पड़ा। कृष्ण द्वारा नाग नाथने का दृश्य सूर के शब्दों में द्रष्टव्य है